भोपाल।
राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ (आरएसएस) के प्रचारकों को महंगी गाडिय़ों में घूमने के साथ-साथ पांच सितारा जीवन शैली की लत लग गई है। मध्यप्रदेश में यह माना जा रहा है कि यदि शिवराज सरकार की हार हुई तो उसका जिम्मेदार कहीं न कहीं संघ और उसके प्रचारक भी होंगे।
यह मानना है वरिष्ठ पत्रकार एनके सिंह का। बताया गया है कि शिवराज सिंह सरकार नियमित रूप से संघ के संपर्क में थी और संघ से फीडबैक ले रही थी। यानि संघ के प्रचारकों ने भी शिवराज सिंह को गलत फीडबैक दिए और शिवराज सिंह भ्रम में बने रहे कि उनकी लोकप्रियता बरकरार है। संघ के चुनाव में अचानक सक्रिय होने के पीछे भी एक नया कारण सामने आया है।
कहा जा रहा है कि संघ इसलिए सक्रिय नहीं हुआ कि शिवराज सिंह सरकार को बचाना है बल्कि इसलिए सक्रिय हुआ क्योंकि यदि सरकार चली गई तो संघ प्रचारकों को मिलने वाली सुविधाएं भी चली जाएंगी। यहां प्रचारकों को लग्जरी गाडिय़ों और पांच सितारा लाइफ स्टाइल की लत लग गई है। बताया गया है कि मध्यप्रदेश की सरकार पर संघ का नियंत्रण नहीं है बल्कि संघ से जुड़े लोग सरकार में प्रभावशाली संख्या में शामिल हैं।
भाजपा के गर्भनाल से जुड़ा है संघ
वरिष्ठ पत्रकार एनके सिंह ने अपने विश्लेषण में लिखा है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से भाजपा की गर्भनाल जुड़ी है। हर दूसरे-तीसरे महीने भाजपा के नेता संघ के दफ्तर में लम्बी-लम्बी बैठकें कर विचार-विमर्श करते हैं। मुख्यमंत्री के अलावा उनकी कैबिनेट के मंत्री भी ऐसी बैठकों में भाग लेते रहे हैं।
आरएसएस में प्रभाव भाजपा में कामयाबी की गारंटी मानी जाती है। सरकार के काम-काज को लेकर संघ समय-समय पर अपना फीडबैक देता रहा है। नौकरशाही के दबदबे को लेकर संघ के प्रचारकों ने कई दफा अपनी नाराजगी जताई है। बालाघाट, झाबुआ, नीमच, आगर-मालवा और रायसेन में संघ से टकराव के बाद पुलिस अफसरों के तबादले हुए।
15 प्रचारक बने अध्यक्ष
संघ से बेहतर तालमेल की खातिर सीएम सेक्रेटेरिएट में खास तौर पर एक अफसर की नियुक्ति की गयी। जब सरकार में इस काबिल कोई अफसर नहीं मिला तो एक बैंक मैनेजर को ऑफिसर ऑन स्पेशल ड्यूटी बनाकर लाया गया। कम से कम 15 भूतपूर्व प्रचारकों को विभिन्न निगम-मंडलों का चेयरमैन बनाया गया।
कई संस्थाओं के काम-काज में संघ की खासी दखल रही है। शिवराज सरकार में संघ की जितनी कद्र होती है, उतनी आजतक किसी सरकार में नहीं हुई। इसका एक ही मतलब निकलता है- पांच साल लगातार निगरानी रखने के बावजूद संघ का फीडबैक सिस्टम ठीक से काम नहीं कर पाया।
साइकल में घूमना बीते जमाने की बात
संघ को लम्बे समय से जानने वाले मानते हैं कि उसकी एक वजह है- संघ के कार्यकर्ताओं की जीवनशैली में बदलाव। चना-मुरमुरा फांक कर, म्युनिसिपल नलों का पानी पीकर, बसों और साइकिलों से गांव-गांंव की धूल फांकने वाले प्रचारक बीते ज़माने की बात हो गए। 15 साल सत्ता में रहने के बाद आईफोन जनरेशन के प्रचारकों में से कई को लग्जरी गाडिय़ों और पांच सितारा सुविधा की चाट लग गयी है।
भाजपा के एक बड़े नेता, जिन्होंने संघ कार्यकर्ता के रूप में अपनी पारी की शुरुआत की, कहते हैं- चना-चबेना खाकर गुजारा करने की बात कहने वाले इस बात को नहीं समझते कि जमाना बदल गया है। उनकी बात सही है। पर क्या संघ के प्रचारकों का पुण्य तब ज्यादा कारगर नहीं था, जब उन्होंने सत्ता का स्वाद नहीं चखा था? यह चुनाव भाजपा के लिए परीक्षा की घड़ी तो है ही, आरएसएस के लिए भी एक चुनौती है।