दूज… यानि कि रथ दूज… अषाढ़ माह की यही वह तिथि थी जब नेशन अलर्ट पत्रिका पाठकों के हाथों तक पहुंची थी। वर्ष 2015… पत्रिका का प्रकाशन इसी वर्ष से प्रारंभ हुआ था। आज 3 साल होने आ गए हैं।
इन तीन सालों में पत्रिका ने जो भी मुकाम हासिल किया है वह पाठकों के भरोसे पर खरा उतरने से बेहद पीछे है। दरअसल, इस नेशन अलर्ट पत्रिका को पाठकों के भरोसे पर खरा उतरने पर ही भरोसा है। नेशन अलर्ट को इस बात पर जरा भी भरोसा नहीं है कि पहले खबर परोसी जाए और उसके बाद किंतु-परंतु होने पर खंडन का हथियार उपयोग में लाया जाए। नेशन अलर्ट ने जो भी छापा है वह तथ्य-परक है और उसके लिए सबूत जुटाए गए हैं।
नेशन अलर्ट… को इन तीन सालों में कई तरह के झंझावत भी झेलने पड़े हैं। इन झंझावतों से जूझते हुए पत्रिका का अनवरत प्रकाशन जारी है। इसमें मेरे सहयोगी विक्रम बाजपेयी व पंकज शर्मा का न केवल अमूल्य सहयोग रहा है बल्कि समय-समय पर इनसे मिली सलाह, राय, सहयोग का मैं कर्जदार हूं। इसी तरह भास्कर भूमि से जुड़े रहे सरदार जरनैल सिंह भाटिया, सरदार अजीत सिंह भाटिया, अतुल श्रीवास्तव, मनमोहन शर्मा, राजेश शर्मा, आकाश दास, सैय्यद शोएब अली, इश्तियाक सूफी के अलावा लोकेश सवाणी, तुषार साहू सहित अन्य का मैं शुक्रगुजार हूं। इसके अलावा एक अधिकारी जिनका मैं यहां नाम नहीं लिख सकता हूं लेकिन उन्हें बारंबार प्रणाम करता हूं कि उन्होंने मुझे नेशन अलर्ट के प्रकाशन के लिए न केवल प्रोत्साहित किया बल्कि समय-समय पर मेरा मार्गदर्शन करते रहते हैं।
धन्यवाद… आप सभी का..