हसदेव अरण्य : आईएएस और अडानी

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जनचर्चा

छत्तीसगढ़ में पदस्थ अखिल भारतीय प्रशासनिक सेवा सँवर्ग (आईएएस) की अधिकारी और अडानी के बीच क्या कोई रिश्ता है ? क्या आईएएस अफसर ईमानदार हैं ? क्या अडानी ने उन्हें किसी भी तरह से लाभान्वित किया है ?

यह चँद ऐसे सवाल हैं जोकि जवाब की प्रतीक्षा कर रहे हैं. मामला दरअसल सरगुजा से जुडा़ हुआ है. इसी सरगुजा जिले में हसदेव अरण्य आता है.

इससे भी गँभीर बात यह है कि छत्तीसगढ़ में कोयले की खुदाई के लिए पेडो़ं की कटाई के लिए गलत तरीके से अनुमति देने के मामले में तत्कालीन जिलाधीश सहित तत्कालीन जिला प्रशासन सरगुजा फँसता दिखाई पड़ रहा है.

जनचर्चा के मुताबिक ऐसा अनुसूचित जनजाति आयोग की रपट में शामिल बताया जाता है.

उल्लेखनीय है कि सरगुजा क्षेत्र में हसदेव के जँगल को एशिया के फेफड़े के रूप में जाना जाता रहा है. मतलब पेडो़ं का इतना घना और विस्तृत इलाका कहीं और नहीं है.

हसदेव अरण्य क्षेत्र के नाम से यह प्रसिद्ध है. इन दिनों इसी फेफड़े को खत्म करने का काम किया जा रहा है.

वह भी शासन प्रशासन की मर्जी से. इस विवाद में राजस्थान विद्युत कँपनी का भी नाम उभर कर बार बार सामने आते रहा है.

जनचर्चा बताती है कि किसी भी औद्योगिक कार्य के लिए ग्रामसभा की अनुमति आवश्यक मानी गई है. इसके बिना कार्य आगे नहीं बढा़या जा सकता.

बताते हैं कि अब चूँकि मामला आदिवासी क्षेत्र में पेडो़ं की कटाई का था तो ग्रामसभा के प्रस्ताव तैयार करने में कूटरचना की गई. इसी फर्जीवाडे़ में तत्कालीन जिलाधीश सहित उनके मातहत अधिकारी शामिल बताए जाते हैं.

आदिवासी, पेडो़ं को भगवान मानते हैं. अब जबकि उनके भगवान की कटाई हो रही है तो उन्होंने हर तरह का विरोध शुरु कर रखा है.

अनुसूचित जनजाति आयोग की जाँच इसकी ही एक बानगी है. आयोग ने अपनी जाँच में जो पाया है वह न केवल चौंकाने वाला है बल्कि उद्योग के लिए अफसरशाही के नतमस्तक होने, बिकने का भी सँकेत है.

जनचर्चा पर भरोसा करें तो मामला थोडा़ पुराना है. यह वर्ष 2017 – 18 की बात होगी. तब सरगुजा की अफसरशाही में पदस्थ रहे कलेक्टर से लेकर तहसीलदार तक आयोग के निशाने पर हैं.

आरोप है कि ग्रामसभा के प्रस्ताव में हेरफेर कर फर्जी तरीके से कागज तैयार किए गए थे. इसमें तत्कालीन कलेक्टर की भी सहमति थी.

अनुसूचित जनजाति आयोग का इस कृत्य को फर्जीवाडा़ मानता है. जिन भी अधिकारियों ने ऐसा फर्जीवाडा़ किया है उन्होंने आदिवासी उत्पीड़न का कार्य किया.

आयोग इस तरह के उत्पीड़न में शामिल तत्कालीन जिलाधीश सहित उनके मातहत अधिकारियों पर जुर्म दर्ज करने की मँशा रखता है.

सरगुजा की तत्कालीन जिलाधीश के अतिरिक्त तत्कालीन अपर कलेक्टर, कार्यपालन अधिकारी, उप जिलाधीश व तत्कालीन तहसीलदार को मामले में आयोग दोषी मानता है. आयोग की रपट अथवा नाराज़गी क्या गुल खिलाती है यह जनचर्चा के लिए देखने वाली बात होगी.

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