आशीष शर्मा
एक बार फिर पत्रकार छत्तीसगढ़ की फिज़ा बदलने की कोशिश कर रहे हैं. दरअसल, चुनाव के ठीक पहले अथवा बाद में पत्रकारों की भूमिका अन्य प्रदेशों से कहीं ज्यादा छत्तीसगढ़ में देखी जाती रही है.
याद करिए, वर्ष 2003 का वह विधानसभा चुनाव जब जनादेश अपने पक्ष में करने की कोशिश में तब के मुख्यमंत्री अजीत जोगी लगे हुए थे. जोगी को कांग्रेस का नेतृत्व करते हुए वर्ष 2003 में हार मिली थी और उसे भाजपा के कुछ असंतुष्ट नेताओं के भरोसे जोगी खरीदने की कोशिश में लगे हुए थे.
तब, एक पत्रकार सामने आया था… वह पत्रकार कोई और नहीं बल्कि नए नवेले पत्रकारों का मार्गदर्शक बनने वाले अनिल पुसदकर थे. अनिल का साथ उस समय भाजपा में रहे वीरेंद्र पांडे ने दिया था. दोनों ने मिलकर बलिराम कश्यप पर डोरे डाल रहे अजीत जोगी के खेल को बेनकाब कर दिया था. तब एक वीडियो सीडी सामने आई थी.
आज पुन: एक सीडी चर्चा में है. यह सीडी जिस पत्रकार की गिरफ्तारी के बाद चर्चा में आई है वह पत्रकार कोई और नहीं बल्कि छत्तीसगढ़ से जुड़े रहे विनोद वर्मा हैं. कोई इन्हें भाजपा का तो कोई कांग्रेस का नजदीकी भले ही बताता रहे लेकिन हम विनोद जी को खालिस पत्रकार के रुप में जानते हैं.
दिल्ली में बैठकर पत्रकारिता करने वाले छत्तीसगढ़ के गिने-चुने लोगों में विनोद का नाम प्रमुखता से लिया जाता रहा है. रुचिर गर्ग, आलोक प्रकाश पुतुल जैसे पत्रकारों के करीबी रहे विनोद वर्मा के पास कथित तौर पर राज्य के एक ऐसे मंत्री की सीडी का चिठ्ठा पुलिस को पता चला है जो कि भाजपा की नाक नीची कर सकता है.
तब कभी अनिल पुसदकर चर्चा में थे.. और आज विनोद वर्मा का नाम चर्चा में है. तब अनिल राज्य के प्रथम मुख्यमंत्री रहे अजीत प्रमोद कुमार जोगी के आड़े आए थे और आज विनोद वर्मा राज्य की भाजपा सरकार के आड़े आ रहे हैं.