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जगदलपुर.
प्रदेश सरकार की परेशानी आने वाले समय में बढ़ने वाली है. अपने साथियों की गिरफ्तारी से नाराज़ पत्रकारों ने उस गाँजा प्रकरण की जाँच सीबीआई से कराने की माँग दोहराई है जिसमें राज्य का पुलिस निरीक्षक शामिल रहा है.
बस्तर. . .कभी गोलियों की आवाज से काँपता है तो कभी पुलिसिया अत्याचार से सहम भी जाता रहा है. एक तरफ पुलिस है तो दूसरी ओर माओवादी. दोनों के ही बीच जान जोखिम में डालकर यहाँ पत्रकारिता की जाती रही है.
इन परेशानियों के बावजूद बुरे समय में यहाँ के पत्रकारों ने फोर्स की मदद भी की है. लेकिन फिर भी ऐसा पुलिस वाला भी है जोकि मानता ही नहीं है.
तभी तो तत्कालीन थाना प्रभारी अजय सोनकर ने चार पत्रकारों को झूठे केस में षड्यंत्रपूर्वक फँसाया. पडोसी प्रांत की पुलिस ने भी वस्तुस्थिति से अवगत होने के स्थान पर गाँजा तस्करी की रपट लिखी और पत्रकारों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया.
वह तो भला हो कि पत्रकारों ने एक साथ, एक ही समय में इतनी तेज आवाज़ उठाई कि गूँगी बहरी सरकार की पुलिस को अपने पैर पीछे खींचने पड़ गए. अंत में निरीक्षक महोदय थाने से हटा दिए गए.
पुलिस कप्तान ने निरीक्षक के खिलाफ जाँच बैठा दी. निरीक्षक दोषी पाते हुए आरोपी बन गए. उन पर खुद प्रकरण दर्ज हो गया. गिरफ्तार कर जेल भी भेज दिए गए.
एसडीएम को सौंपा ज्ञापन . . .
अब बस्तर के सातों जिलों के पत्रकार एक बार फिर से गाँजा प्रकरण की सीबीआई से जाँच कराने की माँग को लेकर एकजुट होने लगे हैं. यह राज्य सरकार के लिए खतरे की घँटी बजने जैसा है.
स्थानीय दंतेश्वरी मँदिर प्रांगण में बस्तर सँभाग के पत्रकार मामले को लेकर एकजुट हुए थे. दो घँटे के प्रदर्शन के बाद पत्रकारों ने राज्यपाल के नाम से ज्ञापन अनुविभागीय दँडाधिकारी (एसडीएम) को सौंपा है.
पत्रकारों ने पुलिसिया जुल्म के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद कर दी है. पत्रकारों ने यह भी कहा है कि यह तो सिर्फ़ आगाज़ है. प्रकरण को अंजाम तक लेकर जाने वह इसी तरह की एकता के साथ आगे बढ़ेंगे.
पत्रकार अब इस मामले की सीबीआई जाँच कराने की माँग कर रहे है. संभाग के सातों जिलों के पत्रकारों ने इसके लिए तैयारी तेज कर दी है.
जिला पत्रकार संघ के अध्यक्ष सुरेश रावल, सचिव धर्मेंद्र महापात्र का कहना है कि पत्रकारों को किसी भी सूरत में न्याय मिलना ही चाहिए. सीबीआई जाँच की माँग इसीलिए की जा रही है.
रावल व महापात्र का कहना है कि यदि सीबीआई जाँच ना भी हो तो किसी उच्च स्तरीय कमेटी को प्रकरण सौंपा जा सकता है. हमारी सिर्फ़ इतनी सी माँग है कि पीडि़त पत्रकारों के साथ न्याय हो.
क्या हुआ था 9 अगस्त को . . ?
अपने पाठकों को थोडा़ पीछे लिए चलते हैं. तारीख थी 9 अगस्त. कोंटा के एक व्यक्ति ने उस दिन दँतेवाड़ा, सुकमा के पत्रकारों को रेत तस्करी के सँबँध में जानकारी दी थी.
दरअसल, कोंटा की सबरी नदी से बड़े पैमाने पर रेत तस्करी की जाती रही है. आंध्र प्रदेश अथवा तेलंगाना के सीमावर्ती स्थानों के लिए इस तरह रेत की तस्करी होते रही है.
सूचना पर दँतेवाड़ा और सुकमा जिले के चार जाँबाज पत्रकार मौके के लिए रवाना हुए थे. रेत तस्करी में शामिल ट्रकों का यह वीडियो तैयार कर रहे थे.
इन पत्रकारों ने पूछा कि क्या रेत परिवहन का पिटपास, परमिट हैं तो ट्रक चालक ने परमिट दिखाई थी. यह परमिट सुकमा जिले में ही रेत के परिवहन की थी जबकि उसे तेलंगाना ले जाया जा रहा था.
कुछ ही मिनटों के भीतर वहाँ पर कोंटा के तत्कालीन निरीक्षक अजय सोनकर पहुँच गए थे. सोनकर पुलिस की वर्दी में नहीं बल्कि सादे कपडो़ में थे.
दोनों पक्षों में थोडी़ बहुत कहासुनी भी हुई थी. मामले की गंभीरता को समझते हुए थानेदार रहे सोनकर ने तब बडी़ चालाकी से काम लिया.
रात्रि में होटल में ठहरे पत्रकारों की कार की डिक्की में उसी ने गाँजा रखवा दिया.
सुबह पत्रकारों का दल जब पेट्रोल लेने चिंतूर आंध्र प्रदेश पहुँचा, तब पहले से तैयार वहाँ की पुलिस ने पत्रकारों को तस्करी के आरोप में गिरफ्तार कर लिया.
चूँकि गिरफ्तार किए गए पत्रकारों का ट्रेकरिकार्ड अच्छा था इस कारण प्रदेश में बवाल मच गया. जगह जगह विभिन्न पत्रकार संघों ने अपनी आवाज़ बुलंद की.
दबाव में आई सरकार ने इसके बाद पुलिस अधीक्षक को जाँच कराने के निर्देश दिए थे. जाँच में अजय सोनकर दोषी पाए गए. पहले वह थाने से हटाए गए. बाद में सोनकर को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया.
बहरहाल, मामले में जेल गए पत्रकार साथी फिलहाल जमानत पर बाहर हैं. इधर पत्रकारों ने पुन: सरकार के खिलाफ एक तरह से जँग का ऐलान कर दिया है.