विजय शर्मा : इधर बढ़ रहे अपराध, उधर छूट रहा भरोसा !

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मृत्युंजय

नेशन अलर्ट/9770656789

रायपुर.

जिसे कुछ माह पहले तक राष्ट्रीय मीडिया हिंदुत्व का टेक्नीशियन लिखा करती थी वही विजय शर्मा नकारात्मक खबरों को लेकर चर्चा में क्यूं है ? क्या सामान्य वर्ग के किसी व्यक्ति को प्रदेश के गृहमंत्री बनने का नैतिक अधिकार नहीं है ? दरअसल, सारे विवाद की जड़ में विजय शर्मा की दबंगता, वाकपटुता और हौसला ही है जो आज खुद उनके लिए नुकसान पैदा करता नज़र आ रहा है.

अपने पाठकों को थोडा़ पीछे लिए चलते हैं. तब प्रदेश में काँग्रेस की सरकार हुआ करती थी. विधानसभा में कवर्धा का प्रतिनिधित्व करने का अधिकार मोहम्मद अकबर के पास था.

अकबर ने 2018 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी के उम्मीदवार अशोक साहू को हरा दिया था. तब अकबर को 1,36,320 और अशोक को 77, 036 वोट मिले थे. यानिकि 59 हजार 286 मतों से उन्होंने भाजपा प्रत्याशी को हराया था.

उस समय डा. रमन सिंह राज्य के मुख्यमंत्री हुआ करते थे. कवर्धा डा. सिंह का न केवल पुराना निर्वाचन क्षेत्र था ( है ) बल्कि गृहग्राम भी है. नतीजे के बाद सरकार बनते ही आम जनमानस अपनी धुन में व्यस्त हो गया लेकिन भाजपा आलाकमान ने कवर्धा की हार को नहीं भुलाया.

उसे जिस चेहरे की तलाश थी वह तो उसके पास उपलब्ध था लेकिन वह सही समय और सही मुद्दे के इंतजार में खाली बैठी हुई प्रतीत हो रही थी. सही समय और सही मुद्दे की उसकी तलाश अक्टूबर 2021 में जाकर पूरी हो पाई.

यह वह समय था जब कवर्धा से लेकर राजधानी रायपुर और दिल्ली तक भगवा झंडा विवाद लोगों की जुबान पर था. इसी वजह से अक्टूबर 2021 में कवर्धा शहर में धारा 144 लागू की गई थी. जोकि करीब 18 दिन लागू रही थी.

हालात इतने बिगड़ गए थे कि यहां कर्फ्यू लगाना पड़ा था. जिले में इंटरनेट की सेवाएं बंद करनी पड़ी. कुछ घरों से भगवा झंडे उतारकर फेंक देने की घटनाएं सामने आईं. 22 अक्तूबर को विजय शर्मा कुछ साथियों सहित गिरफ्तार कर लिए गए थे.

यह तब की कांग्रेस सरकार की रणनीतिक चूक थी. वह भाजपा के जाल में फँस चुकी थी. चूंकि विजय शर्मा सामान्य वर्ग से आते हैं इस कारण भाजपा ने उन्हें मोहम्मद अकबर के तथाकथित आतंक का शिकार बताना चालू किया.

उसके बाद हिंदू संगठनों ने एक बड़ा आयोजन किया. इसमें 120 फीट ऊंचा भगवा झंडा फहराया गया. इस बीच 12 नवंबर 2021 को जेल से बाहर आए विजय शर्मा ने अगले दिन पत्रकारवार्ता की. यह वार्ता नहीं बल्कि धमाका थी.

तब तक प्रदेश में भाजयुमो के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष के रूप में जाने जाने वाले विजय शर्मा ने अधिवक्ता पोखराज सिंह परिहार के साथ यह कहते हुए सनसनी फैला दी कि पुलिस उनका (विजय शर्मा) एनकाउंटर करना चाहती थी. उन्हें मारना चाहती थी.

पुलिस व तब की राज्य सरकार पर यह गँभीर आरोप थे. चूंकि कवर्धा का प्रतिनिधित्व मोहम्मद अकबर के पास था और आरोपी विजय शर्मा थे इस कारण बडी़ तेजी से इसने सांप्रदायिक मोड़ ले लिया.

भाजपा पहली जँग जीत चुकी थी. उसने विजय शर्मा को मोहम्मद अकबर के खिलाफ तैयार किया. चुनाव लड़वाया. नतीजे उसके पक्ष में आए. विजय शर्मा के विधायक बनते ही उसने पूरा मैदान फतेह कर लिया.

एक लाख 44 हजार 257 मत प्राप्त करने वाले विजय शर्मा कवर्धा की नई पहचान थे. उन्होंने उस मोहम्मद अकबर को हराया था जोकि अपने निर्वाचन क्षेत्र और जनता के प्रति समर्पित रहते आए हैं.

अकबर को सांप्रदायिक माहौल में हुए चुनाव में इतना सबकुछ होने के बावजूद एक लाख 4 हजार 665 मत मिले थे. अकबर भले ही 39 हजार 592 मतों से हारे थे लेकिन उन्होंने भाजपा को ही सोचने मजबूर कर दिया था.

तकरीबन इसी सोच के मद्देनजर उसने विजय शर्मा को राज्य मंत्रिमंडल के गठन पर उप मुख्यमंत्री के साथ साथ प्रांत के गृहमंत्री की जिम्मेदारी दिलवाई. शुरूआती समय में सबकुछ ठीक था.

मोर्चे पर नक्सली हार रहे थे. पुलिस के कथित भ्रष्टाचार की खबरें सुनाई नहीं दे रहीं थीं. शराब व अन्य नशीले पदार्थों की तस्करी तकरीबन थम सी गई थी. गाँव गाँव में गाय सुरक्षित नज़र आ रहीं थीं.

. . . लेकिन फिर ऐसा क्या हुआ कि अचानक परिस्थिति बदलने लगी. गृहमंत्री विजय शर्मा जो कल तक दुलारे थे वे ही अब निशाने पर लिए जाने लगे. चूंकि नक्सल मोर्चे पर तेजी से काम हो रहा है इस कारण उतनी ही तेजी से विवाद खडे़ किए जाने लगे.

उलटे पूरे प्रदेश में लूट, बलात्कार, उठाईगिरी, तस्करी, हत्या के मामले शातिराना तरीके से विजय शर्मा के नाम के साथ जोडे़ जाने लगे. दँतेवाडा़ में बच्चे का अपहरण हुआ तो उसे भी पुलिस की नहीं बल्कि विजय की विफलता बताया जाने लगा.

इस बीच प्रदेश में कम से कम दो मर्तबा सांप्रदायिक तनाव भी निर्मित हुआ. बलौदाबाजार-भाटापारा और कबीरधाम की घटनाओं से पूरा छत्तीसगढ़ हिल सा गया. कलेक्टर व एसपी बदलने पडे़. बडे़ अधिकारियों पर निलंबन की गाज गिराई गई.

इन सबके बीच पुलिस भर्ती का जिन्न बाहर निकल कर आ गया. पुलिस उप निरीक्षक भर्ती की प्रक्रिया शुरु हुए पूरे छह साल बीत चुके हैं लेकिन परिणाम का पता ही नहीं है. सीने में सुलग रही आग का प्रदर्शन छत्तीसगढ़ में अभ्यर्थियों ने भीख माँगकर, भूख हड़ताल कर किया है.

उल्लेखनीय है कि छत्तीसगढ़ में सब इंस्पेक्टर, सूबेदार और प्लाटून कमांडर के 655 पदों पर भर्ती के लिए अगस्त 2018 में विज्ञापन जारी किया गया था. तब प्रदेश में डा. रमन सिंह के नेतृत्व वाली भाजपा की सरकार हुआ करती थी.

अभी जिन परिणामों का इंतजार हो रहा है वह 2018 की भर्ती का ही है. 2018 में भाजपा को चुनाव में परास्त कर प्रदेश में काँग्रेस की आ गई. किंतु परंतु करने के बाद काँग्रेस ने 2021 में पदों में बढ़ोतरी कर दी थी. अब 975 पद में भर्ती होनी थी.

तत्कालीन गृहमंत्री भर्ती पाकसाफ होने का महज दावा ही करते रहे लेकिन परिणाम घोषित नहीं हो पाए. फिर चुनाव आ गए और इस बार भाजपा ने सरकार से काँग्रेस को बेदखल कर खुद कुर्सी हथिया ली किंतु नतीजे नहीं निकाल सकी.

ज्ञात हो कि शारीरिक नापजोख 2022 में जून-जुलाई के मध्य संपन्न हुआ था. उप निरीक्षक की प्रारंभिक परीक्षा 29 जनवरी 2023 को आयोजित हुई थी.
इसके बाद मुख्य परीक्षा 26 मई 2023 से 29 मई 2023 तक चली थी.

शारीरिक दक्षता परीक्षा 18 जुलाई 2023 से 30 जुलाई 2023 तक आयोजित की गई थी. साक्षात्कार 17 अगस्त 2023 से 08 सितंबर 2023 तक हुए थे. तब से लेकर अब तक अभ्यर्थी परीक्षा परिणाम का इंतजार ही कर रहे हैं.

प्रदेशभर से राजधानी पहुंचे अभ्यर्थियों ने कहा कि इतने लंबे समय से इंतजार करते हुए वे मानसिक रूप से थक चुके हैं. अब जब तक रिज़ल्ट नहीं निकाला जाएगा, तब तक रायपुर से अपने घर नहीं जाएंगे. सड़क पर भीख मांगकर गुजारा करेंगे.

हाईकोर्ट ने 90 दिन के अंदर रिजल्ट सहित पूरी भर्ती प्रक्रिया को पूर्ण करने के लिए आदेशित किया था. यह समय सीमा भी 10 सितंबर को समाप्त हो चुकी है. ऐसे में अभ्यर्थी गृहमंत्री विजय शर्मा के पास पहुंचे थे. प्रदेश के अलग – अलग जिलों से आए अभ्यर्थियों ने गृह मंत्री से पहले और कल भी मुलाकात की थी.

इस दौरान गृह मंत्री से उन्होंने मांग की कि या तो नियुक्ति दो या तो जीवन से मुक्ति ( इच्छामृत्यु ) दो. अभ्यर्थियों का कहना था कि पुलिस विभाग सिर्फ गृह मंत्री के आदेश के इंतजार में है. धरने पर बैठे एक अभ्यर्थी ने बताया कि 11 दिनों से 22 अभ्यर्थी भूख हड़ताल पर हैं.

वे बताते हैं कि कुछ लोग तूता धरना स्थल में धरने पर रहे. उन्हें कमजोरी इतनी है कि आने की स्थिति में ही नहीं है. ऐसे भी अभ्यर्थी रहे, जिनकी अनशन से तबियत खराब होने पर प्रशासन जबरदस्ती इलाज के लिए अस्पताल ले गया.

अभ्यर्थी ने तो यह तक कह दिया कि सरकार सुध लेने के लिए तूता तक नहीं जाती. बात सुनने के लिए मंत्री जी नहीं आए इसलिए माता – पिता के साथ यहां आना पड़ा. इसका जैसे ही वीडियो सोशल मीडिया में वायरल हुआ एक बार फिर से सरकार और गृहमंत्री दबाव में नज़र आने लगे.

दरअसल, एसआई भर्ती परीक्षा के यह वही अभ्यर्थी थे जोकि परिणाम जारी करने की मांग को लेकर अनशन पर बैठे थे. आनन फानन में गृहमंत्री शर्मा ने उनसे मुलाकात की. भूख हड़ताल और अनशन में बैठे अभ्यार्थियों ने कहा कि डिप्टी सीएम शर्मा के दो सप्ताह में हर हाल में परिणाम जारी करने के आश्वासन के बाद हड़ताल खत्म की है.

बहरहाल, इन सबके बीच विजय शर्मा हैं. विजय उस कवर्धा से आते हैं जहाँ काँग्रेसी मोहम्मद अकबर की एक तरह से तूती बोला करती थी. विजय शर्मा उस नांदगाँव जिले के प्रभारी मंत्री हैं जहाँ से पूर्व मुख्यमंत्री ने लोकसभा का असफल चुनाव लडा़ था.

यह दोनों तथ्य काबिलेगौर हैं. भूपेश मंंत्रिमंडल में अकबरभाई का ओहदा-प्रभाव किसी से छिपा नहीं है. जब भूपेश नांदगाँव लोकसभा से कांग्रेस के प्रत्याशी बनाए गए तो उन्हें सर्वाधिक उम्मीद मोहला – मानपुर – अंबागढ चौकी, कवर्धा के ग्रामीण क्षेत्र से रही होगी.

मोहला मानपुर क्षेत्र जिसे उनकी ही सरकार ने जिले का दर्जा दिया हुआ है वहाँ तो यह उम्मीद पूरी हो गई लेकिन कवर्धा में दाल चाहकर भी गल नहीं पाई. कवर्धा विधानसभा से भाजपा के साँसद सँतोष पांडेय को कुल जमा एक लाख 25 हजार 803 मत मिले थे जोकि काँग्रेस से 10 हजार 405 अधिक थे.

कवर्धा यदि आज अशाँत है तो उसके पीछे दोनों ही नेताओं की आक्रामकता और बेबाक बातचीत की शैली भी जिम्मेदार ठहराई जा सकती है. जितनी तेजी से आरोप लगते हैं उतनी ही तेजी से पलटवार भी किया जाता है.

एक आईपीएस के निलंबन सहित कवर्धा के एसपी – कलेक्टर के स्थानांतरण करा कर यह बाजी विपक्ष का नेता जीतता नज़र आ रहा है लेकिन बचपन से क्रिकेट के शौकीन रहे विजय की गुगली का इंतजार रहेगा. देखते हैं गुगली पर स्टंप गिरता है कि गुगली स्टेडियम के बाहर भेजी जाती है.

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