आध्यात्मिक श्रमण संस्कार शिविर का आयोजन

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राजनांदगांव। दिगंबर जैन समाज गंज लाइन, राजनांदगांव में 10 लक्षण महापर्व पूरे हर्षोल्लास और त्याग, तपस्या के साथ नव आचार्य श्रेष्ठ 108 समय सागर जी महाराज के आज्ञा नुवर्ती शिष्य मुनि श्री 108 आगम सागर जी महाराज, मुनि श्री 108 श्री पुनीत सागर जी महाराज, एलक श्री 105 श्री धैर्यसागर जी महाराज के मंगल सानिध्य में मनाया जा रहा है।
जैन समाज के सूर्यकांत जैन ने जानकारी देते हुए बताया कि 10 लक्षण पर्व में इस वर्ष मुनि श्री के मंगल सानिध्य में आध्यात्मिक श्रावक संस्कार शिविर 8 सितंबर से 17 सितंबर तक आयोजित है। जिसमें जैन धर्म के 10 गुणों को अंगीकार करने के लिए 10 धर्म होते हैं, जिनकी व्याख्या प्रतिदिन मुनि श्री के श्रीमुख से सुनने को मिलती है। शिविर के माध्यम से शामिल शिवरार्थी को प्रातः 5 बजे ध्यान लगाने का अभ्यास, 7 बजे मूलनायक 1008 श्री अरिष्ठ नेमिनाथ भगवान का महामास्तकाभिषेक, पूजन के उपरांत प्रातः 8.30 बजे मुनिद्वय का मंगल प्रवचन इसके पश्चात 10 बजे मुनिश्री की आहारचार्य 12 बजे प्रतिक्रमण एवं सामायिक होता है। तत्पश्चात 1.30 बजे धार्मिक कक्षाएं होती हैं और फिर 2.30 बजे से तत्वार्थ सूत्र, ग्रंथ आदि की पूजा एवं पाठ होता है। फिर मुनिश्री आगम सागर जी द्वारा जैन भूगोल पर विषय व्याख्यान होता है। तत्पश्चात 4.30 बजे शिविरारथी बंधुओं को फलाहार के बाद प्रतिक्रमण, गुरू भक्ति संगीत मय आरती का कार्यक्रम होता है। तत्पश्चात दस लक्षण विषय पर व्याख्यान होता है और उसके बाद उपस्थित सभी निजी स्वाध्याय करते हैं, इसके बाद गुरु सेवा होती है।
मुनिश्री आगम सागर महाराज जी ने आज 10 लक्षण पर्व के तीसरे दिन उत्तम आर्जव धर्म पर प्रवचन देते हुए कहा कि मनुष्य को अपने जीवन में सदैव सरल और सीधा होना चाहिए, उसके व्यवहार में छल-कपट एवं मायाचारी नहीं होनी चाहिए। मुनिश्री जी ने कहा कि मन में हो सो वचन उचारिए, यह व्यवहारिक जीवन का सूत्र बताया। मुनिश्री ने इन 10 धर्म के माध्यम से अपने जीवन को श्रृंगारित करने पर जोर दिया। छल-कपट कभी न कभी खुल ही जाता है, तब अपना व्यवहारिक जीवन झगड़ा और फसाद में उलझ जाता है। उन्होंने बताया मायाचारी धोखेबाजी से त्रियच पशु गति का बंद होता है। तत्पश्चात मुनि श्री पुनीत सागर जी ने अपने व्याख्यान में कहा कि यदि आप अपने जीवन में शांति चाहते हैं, तो धर्म से जुडो धर्म चाहे संसार हो, या मोक्ष हो, दोनों स्थानों पर सुख शांति प्राप्त करने के लिए धर्म करना अनिवार्य है। गृहस्थों का धर्म नीति न्याय सदाचार रूप है, और साधु का धर्म त्याग तपस्या रूप है।

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