जयपुर।
राजस्थान प्रशासनिक एवं अन्य सेवाओं से भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) में प्रमोट कर कलेक्टर बनाए गए अफसरों में से कुछ अपने काम की छाप नहीं छोड़ पाए। भाजपा सरकार के साढ़े तीन साल के कार्यकाल में आठ प्रमोटी आईएएस को कलेक्टर पद से हटाकर सचिवालय या विभागों में लगा दिया गया।
ये अफसर जिलों में कानून-व्यवस्था से लेकर केंद्र राज्य सरकार की महत्वपूर्ण योजनाओं को धरातल पर लागू करने में नाकाम रहे हैं। 15 जिलों में प्रमोटी आईएएस कलेक्टर हैं। 18 डायरेक्ट आईएएस बनने वाले अफसर कलेक्टर हैं। पिछले साल यह संख्या उलट थी। वर्ष 2012 के बाद बड़ी संख्या में प्रमोटी आईएएस अफसर बने थे।
किसका कैसा रहा प्रदर्शन
मधुसूदन शर्मा – मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने अक्टूबर 2015 में बाड़मेर के दौरे में इनसे कई योजनाओं के बारे में पूछताछ की, लेकिन वह कुछ भी नहीं बता पाए। इस पर सीएम ने मौके पर ही नाराजगी जताई थी। मुख्यमंत्री के दौरे के चंद दिन बाद ही शर्मा को कलेक्टर से हटाकर 30 अक्टूबर, 2015 को प्रशासनिक सुधार विभाग में संयुक्त सचिव के पद पर लगा दिया गया। मगर अब वह रिटायर हो चुके हैं।
हनुमानसहाय मीणा – सरकार ने मीणा को 24 फरवरी, 2014 को कलेक्टर बनाकर चूरू जिले की कमान सौंपी, लेकिन वहां से उन्हें महज आठ माह के भीतर हटाकर सचिवालय लगाना पड़ा।
महावीर शर्मा – नवंबर 2016 में भीलवाड़ा का कलेक्टर बनाया था, लेकिन प्रशासनिक पकड़ कम होने के कारण उन्हें छह महीने में ही जाना पड़़ा। टोंक में भी वह महज छह माह तक कलेक्टर रह पाए।
डॉ.कुंजबिहारी गुप्ता – इनको जून 2016 के आखिर में सीकर का कलेक्टर बनाया गया था। पिछले दिनों हुए दंगे पर प्रभावी तरीके से नियंत्रण कर पाने में नाकाम रहे, जिसके कारण उनका तबादला कर दिया गया। इससे पहले वहां के एसपी, एडीएम को भी रवाना कर दिया गया था। गुप्ता महज 11 महीने से कम कलेक्टर रह पाए।
प्रदीप बोरड़ – कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में लंबे समय तक मुख्यमंत्री कार्यालय में सेवा का अनुभव रहा, लेकिन फील्ड में कमजोर प्रशासनिक पकड़ और योजनाओं को प्रभावी तरीके से लागू कर पाने के कारण छह माह से भी कम समय में वापस सचिवालय बुला लिया गया।
मातादीन शर्मा – इनको जैसलमेर जिले की कलेक्टरी मिली थी, लेकिन चंद महीने बाद ही मुख्यमंत्री कार्यालय में अफसरों और नेताओं की शिकायतें पहुंचने लगीं। ऐसे में उन्हें भी 11 महीने से कम समय में ही जयपुर बुला लिया गया।
वेदप्रकाश – बीकानेर में स्थानीय स्तर सभी से बन नहीं पाई। केवल चंद लोगों से ही उनका बेहतर तालमेल हो पाया, जिसके कारण मुख्यमंत्री कार्यालय में शिकायत आने पर उन्हें भी सचिवालय बुला लिया गया।
बन्नालाल – वे अकाउंट्स सेवा से प्रमोट होकर आईएएस बने थे। फील्ड में अनुभव की कमी के कारण लंबे समय तक सचिवालय में ही रहे। बाद में सरकार ने उन्हें सिरोही कलेक्टर लगाया था, लेकिन छह माह में ही उन्हें वापस बुलाना पड़ा।