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बालोतरा.
माजीसा अथवा भुआसा के नाम से अपने भगतों के बीच प्रसिद्ध माँ भटियानी के जन्मोत्सव की तैयारियों में पूरा जसोल डूबा हुआ है. भादो माह के शुक्लपक्ष की सातम को प्रतिवर्ष की तरह इस बार भी भुआसा के अवतरण दिवस पर अनेक कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे.
माँ माजीसा मंदिर जसोलधाम से जुडे़ भोपाल मालवा बताते हैं कि कार्यक्रम की रूपरेखा तैयार करने का काम शीघ्र हो जाएगा. मालवा के अनुसार माँ के मंदिर में अलसुबह से देर रात तक विविध आयोजन की धूमधाम रहेगी.
इस अवसर पर राजस्थान के अलग-अलग स्थानों के अतिरिक्त देश के विभिन्न राज्यों सहित विदेशों से भी माँ के भगत जसोल आएंगे. इन सभी भगतों को माँ माजीसा की पूजपरसादी का मौका मिलेगा.
कौन हैं भुआसा . . ?
रानी भटियानी को ही भुआसा के नाम से भी जाना जाता है. भुआसा एक हिंदू देवी हैं जिनके नाम के जगप्रसिद्ध मंदिर भारत में पश्चिमी राजस्थान और सिंध, पाकिस्तान में हैं.
उनके प्रमुख मंदिरों में जसोल, बाड़मेर और जैसलमेर हैं, जहां उन्हें माजीसा या भुआसा कहा जाता है. अब तो हिंदुस्तान के कोने कोने में माँ की महिमा फैल चुकी है.
ज्ञात हो कि जैसलमेर जिले के गाँव जोगीदास में ठाकुर जोगराज सिंह भाटी के यहां विक्रम संवत 1725 में पुत्री का जन्म हुआ जिसका नाम स्वरूप कंवर रखा गया था. यह बालिका बचपन से ही रूपवती और गुणवान थी.
विवाह योग्य होने पर स्वरूप कंवर का विवाह जसोल रावल कल्याणमल से होना तय हुआ. कल्याणमल ने अपना पहला विवाह तो देवड़ी से किया था जब उनसे कोई संतान न हुई तो दूसरा विवाह स्वरूप कंवर भटियाणी से किया.
स्त्रियों में सोतिया डाह की भावना जन्म जात ही होती है. बड़ी रानी देवड़ी तो स्वरूप कंवर से प्रारंभ से ही ईर्ष्या करने लगी परंतु राणी स्वरूप कंवर उसे अपनी बड़ी बहिन के समान समझती थी. जसोल ठिकाने (राज) में रानी स्वरूप कवर राणी भटियाणी के नाम से जानी जाने लगी.
विवाह के दो वर्ष पश्चात् भटियाणी के पुत्र हुआ जिसका नाम लालसिंह रखा गया. रावल के दो विवाह करने के पश्चात् यह पहला पुत्र होने पर जसोल में खुशी मनाई गयी.
रानी देवड़ी मन ही मन कुंठित रहने लगी. राणी भटियाणी की आँखों का तारा देवड़ी की आँखों में खटकने लगा.
कुछ समय पश्चात् देवड़ी के भी एक पुत्र हुआ. लालसिंह ही जसोल ठिकाने का उत्तराधिकारी बन सकता था क्योंकि देवड़ी का पुत्र तो उससे उम्र में छोटा था.
इसी कुटिलता को लिए हुए देवड़ी ने लालसिंह की हत्या का षड़यंत्र रचा. वह उपयुक्त अवसर की तलाश में रहने लगी थी.
श्रावण (सावन) की तीज के अवसर पर राणी भटियाणी अपनी सहेलियों के साथ बगीचे में झूला झूलने गई हुई थी. वे कुंवर लालसिंह को महल में अकेला ही सोया हुआ छोड़ गई थी.
देवड़ी ऐसे ही मौके की तलाश में थी. उसने कुंवर लाल को दूध में जहर मिलवा कर पिला दिया. एक मान्यता यह भी प्रचलित है कि कुंवर लालसिंह को महल की सीढियों से लुढ़का दिया गया. उसकी तत्काल मृत्यु हो गई.
देवड़ी लालसिंह की मृत्यु के समाचार पाकर बड़ी प्रसन्न हुई. आखिर रास्ते का कांटा दूर हो गया. उसने सोचा कि अब मेरा पुत्र ही यहाँ का शासक बनेगा.
इधर राणी भटियाणी जब अपनी सहेलियों के साथ तीज का झूला झूल कर वापस आईं तो लालसिंह को मृत पाया. राणी भटियाणी इस कुटिल चाल को समझ गईं.
पुत्र वियोग में वह व्याकुल हो गईं. उसका मन कहीं भी नहीं लगता. अब वह अस्वस्थ रहने लगी. उधर बड़ी रानी देवडी़ कुंवर लालसिंह को मरवा कर ही संतुष्ट नहीं हुईं.
उसने राणी भटियाणी को भी मरवाने की सोच ली. उसने भटियाणी को जहर दिलवा दिया. इस कारण विक्रम संवत 1775 माघ सुदी द्वितीया को उनका स्वर्गवास हो गया.
राणी भटियाणी की मृत्यु का समाचार सुन कर जसोल ठिकाने में शोक छा गया. एक दिन राणी भटियाणी के गांव से दो ढोली शंकर व ताजिया रावल कल्याणमल के यहां माँगने के लिए चले आए.
रानी देवड़ी ने उन्हें भटियाणी के चबूतरे के आगे जाकर मांगने को कहा. दु:खी होकर ढोली अपने गाँव की “बाईसा” के चबूतरे के आगे जाकर सच्चे मन से विनती करने लगे. आप बीती सुनाई.
राणी भटियाणी ने प्रसन्न होकर उन दोनों को साक्षात दर्शन दिए. परचे के प्रमाण स्वरूप रावल कल्याणमल के नाम एक पत्र दिया. इसमें रावल की मृत्यु उसी दिन से बारहवें दिन होना लिखा था.
ऐसा ही हुआ. रावल कल्याणमल का स्वर्गवास ठीक बारहवें दिन हो गया. यह बात आस पास के गाँवों में फैल गई. इसके बाद तो राणी भटियाणी ने जनहित में अनेक परचे दिए.
जसोल के ठाकुरों ने राणी भटियाणी के चबूतरे पर एक मंदिर बनवा दिया. उनकी विधिवत पूजा करने लगे.
प्रतिवर्ष चैत्र और आश्विन माह के नवरात्र में वैशाख, भाद्रपद और माघ महीनों की शुक्ल पक्ष की तेरस व चवदस को यहाँ श्रद्धालु आते हैं. अपनी मनौती पूरी होने पर जात देते है.
कांचळी, ओढ़नी, बिंदिया, चूड़ियां व अन्य स्त्री के श्रृंगार की वस्तुएं माता राणी भटियाणी जी के भक्त जन चढ़ाते हैं. इनके अलावा कई स्थानों व घरों में माता राणी भटियाणी की जोत होती है. कष्टदायी लोगों का भटियाणी माताजी कल्याण करती हैं.
राजस्थान ही नहीं भारतवर्ष के हर कोने से यहाँ पर श्रद्धालु आते हैं. राणी भटियाणी के नाम से एक पशु मेला भी आयोजित किया जाता है. इसमें ऊंट, घोड़े, बैल आदि खरीदने और बेचने के लिए व्यापारी आते हैं.