नई दिल्ली।
क्या भाजपा किसान विरोधी है ? क्या भाजपा शासित राज्यों में किसान वाकई खुश हैं ? ये सवाल दरअसल इसलिए उठ रहा है क्यूंकि केंद्र सरकार ने अभी हालही में किसान आत्महत्या संबंधी एक रपट सुप्रीम कोर्ट को सौंपी है. इस रपट में भाजपा शासित राज्यों में छत्तीसगढ़ भी शामिल है जिसने आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु को किसान आत्महत्या के मामले में पीछे छोड़ दिया है.
केंद्र सरकार ने खुद माना है कि किसानों की आत्महत्या के मामले में छत्तीसगढ़ पांचवे नंबर पर है. यहां हर साल 954 किसान आत्महत्या करते हैं. केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में पहली बार स्वीकार किया है कि हर साल देश में 12 हज़ार किसान आत्महत्या कर रहे हैं. देश के मुख्य न्यायाधशी जस्टिस जेएस खेहर की पीठ को सरकार ने अपनी रिपोर्ट सौंपी है.
दिलचस्प ये है कि भारतीय जनता पार्टी की सरकार वाले राज्यों में किसान आत्महत्या के आंकड़े शीर्ष पर हैं. देश में सबसे अधिक 4291 किसानों ने महाराष्ट्र में आत्महत्या की, जबकि दूसरे नंबर पर कर्नाटक है, जहां 1569 किसानों ने अपनी जान दे दी. तीसरे नंबर पर तेलंगाना है, जहां 1400 किसानों ने आत्महत्या की, जबकि चौंथे नंबर पर मध्यप्रदेश है, जहां 1290 किसानों ने अपनी जान दे दी.
देश भर में आत्महत्या के आंकड़ों को देखें तो कुल 133623 लोगों ने आत्महत्या की,जिनमें किसानों का आंकड़ा 9.4 प्रतिशत के आसपास है.
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को इस बात पर आड़े हाथ लिया, जब केंद्र ने किसानों की स्थिति बेहतर करने के लिये नीति आयोग द्वारा एक योजना बनाने संबंधी जानकारी दी. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि नीति आयोग पहले से ही बोझ से दबा हुआ है. अब उसे एक और नीति बनाने का जिम्मा क्यों दिया जा रहा है.
अदालत ने एक एनजीओ की याचिका पर सुनवाई करते हुये कहा कि एनजीओ ने किसानों की आत्महत्या के जो आंकड़े दिये हैं, उन आंकड़ों को लेकर भी सरकार स्थिति स्पष्ट करे और अगली तारीख़ पर अपना जवाब पेश करे. इससे पहले छत्तीसगढ़ में हर दिन 4 किसानों की आत्महत्या के मामले सामने आते रहे हैं. लेकिन सरकार अपनी ही सरकारी एजेंसी एनसीआईरबी के आंकड़ों को सवालों के कटघरे में खड़ा करती रही है और किसान आत्महत्या के आंकड़ों को मानने से इंकार भी करती रही है.