नई दिल्ली।
पंजाब में आतंकवाद के खिलाफ डटकर खड़े हुए रिटायर्ड आईपीएस केपीएस गिल की भड़ास एक बार फिर सामने आई है. बुर्कापाल में हुए नक्सली हमले को लेकर उन्होंने सरकार और नक्सलियों के खिलाफ अपनाई जा रही रणनीति को निशाने पर लिया है. उन्होंने साफ तौर पर अपनी बात सामने रखते हुए खराब प्रशिक्षण, अनुशासनहीनता और बुरे नेतृत्व को जिम्मेदार बताया है.
गौरतलब यह भी है कि मुख्यमंत्री ने भी हालही में नक्सलियों के खिलाफ नई रणनीति बनाने के मुद्दे पर विधानसभा में बयान दिया है. सुरक्षा विशेषज्ञों का मत है कि छत्तीसगढ़ में नक्सलियों के खिलाफ अपनाई जा रही रणनीति ही सुरक्षाबलों को नुकसान पहुंचा रही है.
छत्तीसगढ़ में सुरक्षा सलाहकार रह चुके केपीएस गिल पहले भी कथित रुप से छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा ‘वेतन लो, मौज करोÓ की सलाह संबंधी बयान को लेकर चर्चा में रहे हैं. उन्होंने कहा था कि छत्तीसगढ़ में नियुक्ति के दौरान उन्हें सरकार ने कहा था कि वे नक्सली मामलों पर अधिक ध्यान न दें. सरकार उन्हें वेतन-भत्ते दे रही है, वे आराम से मौज करें.
सुकमा हमले के बाद छत्तीसगढ़ सरकार एक बार फिर से गिल के निशाने पर है. गिल ने एक लेख में लिखा है कि यह बात बहुत साफ है और जिसे आम जनता भी जानती है कि अनुशासनहीनता, खराब प्रशिक्षण और बुरे नेतृत्व ने ही सुकमा के बुर्कापाल में पराजय के लिये योगदान दिया होगा.
होमवर्क में पीछे नेतृत्व
गिल ने कहा है कि पंजाब में आतंकवाद के दौर में और आंध्र प्रदेश में भी माओवादियों के खिलाफ चलाये गये सफल अभियान के समय ऐसी घटनाओं की जांच के कारण ही विफलताओं की पुनरावृत्ति नहीं हुई. उनका सीधा इशारा नक्सल ऑपरेशन का नेतृत्व करने वालों और सुरक्षा विशेषज्ञ कहलाने वालों की ओर है. नक्सलियों के हमलों के मामले में जांच से पीछे हटाना और होमवर्क से दूर रहने को उन्होंने एक बड़ा कारण बताया है.
बस्तर की गलत जानकारी
केपीएस गिल ने कहा है कि बस्तर में चलाये जा रहे अभियानों को लेकर बहुत कुछ लिखा-कहा गया है कि यह चुनौतीपूर्ण इलाका और घने जंगल वाला इलाका है. लेकिन इस तरह की अधिकांश जानकारियां गलत हैं. भारत में इससे कहीं अधिक मुश्किल इलाके, घने जंगलों और चुनौतीपूर्ण स्थितियों में उग्रवाद के खिलाफ अभियान चलाये गये हैं. पूर्वोत्तर के पहाड़ी रास्ते या जम्मू कश्मीर के पहाड़ी इलाकों में या पंजाब के मांड के दलदली इलाकों में उनकी अपनी चुनौतियां रही हैं. बुर्कापाल में जहां यह हमला हुआ, वह गुल्मी ज़मीन थी और सीमित पेड़ थे.
नहीं बनाने दी सड़क
अपने कार्यकाल को याद करते हुये केपीएस गिल ने कहा कि 2006 में सुरक्षा सलाहकार रहते हुये उन्होंने सरकार को बस्तर की तीन सड़कों के निर्माण की अनुशंसा की थी. ये सड़के थीं- दोरनापाल-जगरगुंडा, सुकमा कोंटा और नारायणपुर-ओरछा, जो मुश्किल से 200 किलोमीटर रही होंगी. जब मैंने निचले स्तर पर सुरक्षा और प्रशासनिक अधिकारियों के साथ इस पर बात की तो उनके भीतर बहुत उत्साह था और मैं आश्वस्त था कि इसके लिये पैसा था. लेकिन जब रायपुर में उच्च स्तर पर इस योजना के ले जाया गया तो वहां सारा कुछ ध्वस्त हो गया. दस साल बाद भी इनमें से एक भी सड़क पूरी नहीं हो पाई.
केपीएस गिल ने अफगानिस्तान के अपने अनुभवों को साझा करते हुये कहा है कि वहां युद्ध के माहौल में भी हमने 218 किलोमीटर देलारम-जऱंज हाईवे का निर्माण चार साल में किया था. यह कैसी परिस्थिति है कि हम अपने ही इलाके में 50 से 80 किलोमीटर की छोटी सड़क भी नहीं बना पा रहे हैं, जो अफगानिस्तान के युद्ध की छाया मात्र भी नहीं है.