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डोंगरगांव. पूर्व मुख्यमंत्री व राजनांदगांव लोकसभा क्षेत्र से पराजित कांग्रेसी प्रत्याशी भूपेश बघेल के मंच पर अब नवाज खान नजर आने लगे हैं। जिला सहकारी केन्द्रीय बैंक के तत्कालीन अध्यक्ष नवाज खान पूरे लोकसभा चुनाव के दौरान भूपेश बघेल से क्यूं और कैसे दूर थे अब लोगों को समझ आने लगा है।
उल्लेखनीय है कि पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को सांसद संतोष पांडे के हाथों जबरदस्त हार झेलनी पड़ी। पूर्व मुख्यमंत्री बघेल एक तो हार गए दूसरी ओर वह अपनी किसान हितैषी छबि नहीं बचा पाए। प्रदेश में पिछड़ा वर्ग का सबसे बड़ा नेता होने का उनका औरा भी छिन्न भिन्न हो गया। अब वह देश में बनी नई सरकार के भविष्य पर टिका टिप्पणी करने में लगे हुए हैं।
पुनः सक्रिय हुए नवाज
भूपेश बघेल ने बीते दिनों राजनांदगांव जिले में आभार जताने अपनी बैठकों का सिलसिला प्रारंभ किया था। इस दौरान वह मोहला मानपुर, खुज्जी सहित डोंगरगांव विधानसभा क्षेत्र पहुंचे थे। डोंगरगांव विधानसभा क्षेत्र में हुई उनकी बैठक में डोंगरगांव विधायक दलेश्वर साहू सहित जिला कांग्रेस अध्यक्ष भागवत साहू, रमेश खंडेलवाल, महेन्द्र साहू उपस्थित थे।
इनके अतिरिक्त मंच पर एक जो चेहरा लोगों को नजर आया वह गौरतलब था। यह चेहरा किसी और का नहीं बल्कि जिला सहकारी केन्द्रीय बैंक के तत्कालीन अध्यक्ष नवाज खान का था। यह वही नवाज खान हैं जिन्होंने पूरे लोकसभा चुनाव के प्रचार के दौरान एक तरह से भूपेश बघेल से दूरी बना रखी थी।
भले ही वह अंदरूनी तौर पर कांग्रेस और भूपेश बघेल के पक्ष में कार्य करते रहे हों लेकिन उन्हें कांग्रेस की चुनावी बैठकों, सभाओं आदि में नहीं देखा गया। इस पर सवाल जवाब भी हुआ था। बात आयी और गयी हो गई थी लेकिन अब जबकि भूपेश बघेल की सभाओं में फिर से नवाज सक्रिय नजर आते हैं तो मुद्दा उठने लगा है।
दरअसल, नवाज खान को जिले में भूपेश बघेल का सबसे बड़ा समर्थक माना जाता है। नवाज ने भूपेश बघेल के मुख्यमंत्री रहने के दौरान छोटे बड़े अधिकारी से लेकर समाज प्रमुखों, पत्रकार संगठन सहित अनगिनत लोगों के कार्यों को लेकर बड़ी दौड़ धूप की थी।
माना जाता था कि नवाज जिले में भूपेश बघेल के चुनावी कार्यक्रम की कमान संभालेंगे लेकिन ऐसा संभव नहीं हो पाया। नवाज ठीक उसी तरह पीछे कर दिए गए जिस तरह से पूर्व मंत्री मोहम्मद अकबर अपने विधानसभा क्षेत्र कवर्धा में कहीं नजर नहीं आए।
इसके बाद लोग अब यह कहने लगे हैं कि भूपेश अपनी छवि को लेकर बेहद चिंतित रहे हैं वह रामभक्त होने सहित सनातनी हिन्दू होने को लेकर कार्य करते रहे हैं। संभवतः इसी के मद्देनजर उन्होंने नवाज-अकबर को पीछे रख दिया था।
चूंकि ये सामने नहीं आ पाए इस कारण भाजपा को इन पर तीर चलाने का अवसर नहीं मिल पाया इसके बाद भी अंततः भूपेश की ही हार हुई। नतीजे के बाद अब भूपेश जहां केन्द्र सरकार का भविष्य बताते हुए मध्यावधि चुनाव के लिए अपने कार्यकर्ताओं को तैयार रहने की बात कह रहे हैं वहीं नवाज हां में हां मिलाते नजर आ रहे हैं।