जीपी की बहाली का आदेश और मुश्किलों का दौर

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रायपुर. केन्द्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण (कैट) से बहाली का आदेश प्राप्त करने वाले आईपीएस जीपी सिंह के प्रकरण से एक नया सवाल पैदा हो गया है। दरअसल, मुख्य गवाह मणिभूषण के उस शपथ पत्र पर यदि गौर किया जाए तो इससे आईपीएस शेख आरिफ की मुश्किलों का दौर प्रारंभ होने का संकेत मिलता है।
आईपीएस जीपी सिंह छत्तीसगढ़ पुलिस में एडीजी रैंक के अफसर हैं। उन्हें प्रदेश की तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने विभिन्न मामलों में दोषी बताते हुए उनके खिलाफ केन्द्र सरकार को अनुशंसा प्रेषित की थी। इसी अनुशंसा के आधार पर गतवर्ष 20 जुलाई को जीपी सिंह अनिवार्य रूप से सेवानिवृत्त कर दिए गए थे।
अपने खिलाफ इतने बड़े फैसले को आईपीएस जीपी सिंह ने शांतिपूर्वक चुनौती दी थी। बिना किसी शोर-शराबे और अखबारबाजी के कैट में उनका प्रकरण चल रहा था जिसका फैसला उनके पक्ष में आया है। अनिवार्य सेवानिवृत्ति के आदेश को रद्ध करते हुए कैट ने जीपी से जुड़े सभी मामलों के निपटारे के लिए चार सप्ताह की मोहलत शासन को दी है।

फर्जी सबूत गढ़े गए थे…
मुख्य गवाह रहे मणिभूषण ने कैट में एक शपथपत्र दिया था। इसी शपथपत्र में मणिभूषण ने उल्लेखित किया था कि आईपीएस जीपी सिंह के खिलाफ फर्जी सबूत गढ़े गए थे। उनके घर से कोई सोना जब्त नहीं हुआ था। शपथपत्र में मणिभूषण बताते हैं कि मनगढ़त केस बनाकर जीपी सिंह फसाए गए थे।
मणिभूषण के शपथपत्र के मुताबिक जो आपत्तिजनक दस्तावेज जीपी सिंह के निवास से बरामद बताए गए थे वह ईओडब्ल्यू और एसीबी वाले लेकर आए थे। झूठी शिकायत का उल्लेख करते हुए मणिभूषण ने शपथपत्र में लिखा है कि उसे नाबालिक बच्ची से दुष्कर्म के केस में फसा देने की धमकी देते हुए ईओडब्ल्यू-एसीबी ने मामला दर्ज किया था।
तब ईओडब्ल्यू के प्रभारी आईपीएस शेख आरिफ हुआ करते थे। उन्हें तत्कालीन कांग्रेस सरकार का नजदीकी अफसर बताया जाता है। जैसे ही प्रदेश में भाजपा की पुनः सरकार बनी वैसे ही शेख आरिफ की ईओडब्ल्यू से बिदाई हो गई। फिलहाल यह प्रकरण उनके लिए परेशानी खड़ी करने वाला नजर आता है। देखना है मामले में आगे क्या मोड़ आता है।
हालांकि इस विषय पर आईपीएस शेख आरिफ से भी नेशन अलर्ट ने बातचीत की थी। उन्होंने प्रकरण को न्यायालयीन कार्यवाही से जुड़ा बताते हुए कुछ भी कहने को लेकर अपनी असमर्थता जताई।
जबकि अधिवक्ता मनोज चौधरी इस विषय पर कहते हैं कि यह गंभीर मामला है। चौधरी के अनुसार यदि वाकई झूठे सबूत बनाए गए थे, झूठी जब्ती की गई थी और फैसला सरकार के खिलाफ आया है तो वह सोचने लायक विषय है। इस पर यदि कल को कोई शिकायत करता है तो झूठे मामले बनाने वाले कर्मचारी अथवा अधिकारी पर अपराधिक प्रकरण दर्ज किया जा सकता है।

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