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राजनांदगांव. पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी से लेकर पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल तक के राईट और लेफ्ट कहे जाने वाले जिले के उभरते कांग्रेसी नेता नवाज खान इस चुनावी मौसम में न जाने कहां गायब हो गये हैं ? दरअसल, नवाज न तो भूपेश के दौरे के दौरान उनके साथ नजर आ रहे हैं और न ही पृथक से खुद चुनावी दौरा करते हुए कहीं आते-जाते दिखाई दे रहे हैं।…तो क्या नवाज से भूपेश ने तयशुदा रणनीति के तहत दूरी बनाकर रखी हैं।
नवाज खान को जो ऊंचाई पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी के समय में मिली थी उस ऊंचाई को उन्होंने और ऊंचा भूपेश बघेल के कार्यकाल के दौरान किया। पहले प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष रहने के दौरान भूपेश बघेल ने नवाज पर जो भरोसा जताया था वहीं भरोसा उनका उन पर मुख्यमंत्री रहने के दिनों में कायम रहा।
तब से लेकर अब तक नवाज का सफर…
छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद अजीत जोगी ने मुख्यमंत्री रहने के दिनों में एक-एक जिले में अपना पृथक से समर्थकों का झुंड तैयार किया था। राजनांदगांव जिले से इस झुंड में नवाज खान शामिल थे। तब नवाज के अलावा जिले से जो लोग भी कांग्रेसी मुख्यमंत्री रहे अजीत जोगी के खेमे में थे उन्हें अजीब सी नजरों से देखा जाता था।
खैर… न अब अजीत जोगी रहें और न उनका खेमा रहा। जोगी के खेमे में शामिल रहें अधिकांश कांग्रेसियों की उनके सुपुत्र अमित जोगी के साथ लंबी यात्रा नहीं हो पाई। कोई पहले अमित जोगी से अलग हो गया तो किसी ने बाद में जनता कांग्रेस से किनारा कर लिया। मतलब जोगी के विश्वसनीय घटते चले गए।
इन्हीं में एक नाम नवाज खान का शामिल हैं। नवाज ने जोगी खेमे से किनारा कर भूपेश का खेमा पकड़ लिया था। यह वह समय था जब भूपेश बघेल प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष हुआ करते थे। धीरे-धीरे नवाज प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष भूपेश बघेल के न केवल नजदीक होते चले गए बल्कि विश्वासपात्र भी बन गए।
भूपेश के नेतृत्व में कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव 2018 में ऐतिहासिक जीत हासिल कर प्रदेश में सरकार बनाई थी। भूपेश बघेल ने मुख्यमंत्री बनने के तुरंत बाद अपने खासमखास कहे जाने वाले नवाज खान को राजनांदगांव जिला सहकारी केन्द्रीय बैंक के अध्यक्ष पद का दायित्व सौंपकर उन पर अपने भरोसे को और गहरा किया था।
एक समय था जब राजनांदगांव संसदीय क्षेत्र में उत्तर से लेकर दक्षिण तक, पूर्व से लेकर पश्चिम तक किसी को भी यदि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से आसानी से मिलना होता तो उसे नवाज खान का सहारा लेना ही पड़ता था। इसमें पत्रकार संगठन भी शामिल हैं। मतलब समझिए नवाज की तूती किस हद तक बोला करती थी।
2023 का विधानसभा चुनाव आया तो नवाज खान के कहने पर ही संसदीय क्षेत्र के कई विधायक प्रत्याशी तय हुए थे…ऐसी ऐसी आम जनमानस में चर्चा रही है। तब कहा जाता था कि डोंगरगढ़ विधायक रहे भुनेश्वर बघेल महज इस कारण पुनः प्रत्याशी नहीं बन पाये क्यूंकि उनके स्थान पर नवाज ने हर्षिता स्वामी का नाम बढ़ा दिया था।
यह वही समय था जब खुज्जी विधायक रही श्रीमती छन्नी साहू के स्थान पर पूर्व विधायक रहे भोलाराम साहू को कांग्रेस ने अचानक प्रत्याशी बनाकर लोगों को चौंका दिया था। तब भी नवाज की ही एप्रोच सुनाई दी थी। यह वही समय था जब डोंगरगांव विधायक दलेश्वर साहू और मोहला मानपुर विधायक इंद्रशाह मंडावी भी नवाज की सहमति चाहते थे।
खैर वक्त-वक्त की बात है। अब न वह समय रहा और न ही भूपेश बघेल मुख्यमंत्री रहे, न नवाज खान जिला सहकारी केन्द्रीय बैंक अध्यक्ष रहे…और न ही नवाज संसदीय क्षेत्र के कांग्रेसियों की पहली पसंद के नेता रहे हैं।
जिला पंचायत के पूर्व उपाध्यक्ष सुरेन्द्र दाऊ तो एक तरह से नवाज खान के नाम से ही पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के सामने मंच पर बिफर पड़े थे। कांग्रेस के भीतर सुरेन्द्र दाऊ जैसे अनगिनत चेहरे हो सकते हैं जिन्हें नवाज खान का चेहरा पसंद न आता हो लेकिन फिर भी नवाज हैं तो कांग्रेसी ही।
इन सबके बाद भी जब पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को कांग्रेस ने राजनांदगांव संसदीय क्षेत्र से अपना प्रत्याशी बनाया है तब उनके साथ नवाज खान जैसा चेहरा क्यों पहले की तरह नजर नहीं आ रहा है। क्या नवाज और भूपेश बघेल में किसी तरह की दूरी बन गई है अथवा भूपेश बघेल किसी रणनीति के तहत नवाज खान को अपने से दूर रखे हैं ?
जिले के वरिष्ठ पत्रकार जितेन्द्र जैन कहते हैं कि यह आपसी मनमुटाव नहीं बल्कि आपसी सहमति का मामला है। दरअसल, नवाज कांग्रेस के भीतर और बाहर जितने लोकप्रिय हैं उतने ही विवादास्पद भी हैं। नवाज को दूर रखकर कांग्रेस प्रत्याशी एक तरह से सुरक्षित खेल खेल रहे हैं। वह नहीं चाहते कि नवाज को सामने रखकर उनके प्रति नाराजगी को और बढ़ाये।
जैन के शब्दों में नवाज किसानों से लेकर जिला सहकारी केन्द्रीय बैंक में हुई भर्ती तक के मामले में कथित तौर पर आरोपजदा हैं। संभवतः इसी के मद्देनजर उनसे दूरी बनाकर चलने में कांग्रेस और उसके प्रत्याशी अपनी भलाई समझ रहे हैं।
बहरहाल, यह तय है कि नवाज खान इन दिनों भूपेश बघेल के दाएं व बाएं नजर नहीं आते हैं। न तो वह भूपेश के किसी कार्यक्रम में शामिल हो रहे हैं और न ही उन्होंने खुद अपनी ओर से कांग्रेस के प्रचार को लेकर इस चुनावी मौसम में संसदीय क्षेत्र के भीतर किसी तरह का दौरा आदि किया हो। इन सबके बाद भी वह सोशल मीडिया में भूपेश और कांग्रेस के नाम से वोट मांगने सक्रिय जरूर हैं लेकिन इनमें भी उनकी तस्वीर शायद ही किसी पोस्ट में नजर आए। …तो क्या नवाज चुनावी मौसम में गायब कर दिए गए हैं ?