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राजनांदगांव. यदि सांसद संतोष पांडेय ने इस लोकसभा चुनाव में जीत हासिल की तो वह इतिहास रच देंगे. दरअसल, पहली बार राज परिवार से बाहर का कोई प्रत्याशी लगातार दूसरी मर्तबा सांसद बनने की दहलीज पर खड़ा है. इसमें सफल होने पर सांसद संतोष पांडेय का नाम दिग्गजों की सूची में शामिल हो जाएगा.
संसदीय चुनाव में राजनांदगांव लोकसभा क्षेत्र का नाम वर्ष 1957 से उल्लेखित है. तब से लेकर अब तक राज परिवार से जुडे़ प्रत्याशियों को छोड़ दिया जाए तो कोई भी व्यक्ति दूसरी मर्तबा सांसद नहीं बन पाया है.
एक बार हुआ उपचुनाव…
संसदीय क्षेत्र के मतदाताओं को अब तक अपने सांसद चुनने का अवसर 17 मर्तबे मिला है. इसमें वर्ष 2007 में हुआ लोकसभा उपचुनाव शामिल है.
इन 17 लोकसभा चुनावों में कांग्रेस सर्वाधिक 9 बार अपने प्रत्याशी को संसद पहुँचाने में सफल रही है. भाजपा को 7 तो जनता पार्टी को एक बार सफलता मिली है.
कांग्रेस से राजा बहादुर सिंह, रानी पद्मावती देवी, रामसहाय पांडे, शिवेंद्र बहादुर सिंह, मोतीलाल वोरा और देवव्रत सिंह सांसद बनने में सफल रहे थे.
इनमें राजा बहादुर सिंह शुरूआती दो कार्यकाल 1957 व 1962 में सांसद निर्वाचित हुए थे. राज परिवार से जुडे़ रहे शिवेंद्र बहादुर सिंह कुल तीन बार 1980, 1984 और 1991 में सांसद चुने गए थे.
यहाँ के संसदीय इतिहास का इकलौता उपचुनाव वर्ष 2007 में हुआ था. तब इसे जीतने वाले देवव्रत सिंह भी राज परिवार से ही आते थे. लेकिन इसके बाद इस सीट पर भाजपा ने अपने पैर अंगद की तरह जमा लिए हैं.
गुप्ता-शर्मा-सिंह की विरासत…
भाजपा की तरफ से इस सीट पर जीत का आगाज धर्मपाल गुप्ता ने किया था. दुर्ग निवासी गुप्ता 1989 में सांसद बनने में सफल हुए थे. ऐसा करने वाले वह पहले भाजपाई थे.
1996 में हुए लोकसभा चुनाव में अशोक शर्मा सांसद निर्वाचित हुए थे. 1999 में भाजपा की ओर से सांसद डा. रमन सिंह बने थे.
केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल होने वाले पहले सांसद होने की भी उल्लेखनीय उपलब्धि डा. रमन के नाम दर्ज है. वर्ष 2004 में रमन के लिए अपनी विधानसभा सीट डोंगरगाँव को खाली करने वाले प्रदीप गाँधी सांसद चुने गए थे लेकिन उन्हें अयोग्य ठहरा दिए जाने के चलते हुए उपचुनाव में भाजपा यह सीट कांग्रेस के देवव्रत सिंह के हाथों हार गई थी.
2009 से भाजपा का कब्जा…
वर्ष 2007 में हुए उपचुनाव को जीतकर सांसद बने देवव्रत सिंह 2009 आते आते बेहद अलोकप्रिय हो चुके थे. तब उन्हें लोकप्रिय चेहरा माने जाने वाले भाजपाई मधुसूदन यादव के हाथों हार झेलनी पडी़ थी.
मधुसूदन यादव ने जीत का सिलसिला प्रारंभ किया कि तब से लेकर अब तक यहाँ से भाजपा के ही प्रत्याशी सांसद बनते आ रहे हैं. पहले वर्ष 2014 में अभिषेक सिंह और उसके बाद 2019 में संतोष पांडेय सांसद चुने जा चुके हैं.
वोरा-रमन को पीछे छोड़ सकते हैं संतोष…
अब पहली बार संतोष पांडेय को इतिहास रचने का अवसर मिला है. दरअसल, सांसद संतोष पांडेय यदि पुन: निर्वाचित होते हैं तो वह स्थानीय दिग्गजों में शामिल हो जाएंगे.
इस सीट से दो ही चेहरे ऐसे रहे हैं जो एक से अधिक मर्तबा सांसद चुने गए थे. राजा बहादुर सिंह और शिवेंद्र बहादुर सिंह दोनों राज परिवार का प्रतिनिधित्व करते थे.
इनके अलावा किसी को भी दूसरी बार सांसद बनाने का कृत्य यहाँ की जनता को करने का अवसर नहीं मिला. फिर भले ही वह नाम दिग्गज कांग्रेसी और पूर्व मुख्यमंत्री, पूर्व राज्यपाल मोतीलाल वोरा का हो या फिर यहाँ से सांसद निर्वाचित हो पहली बार केंद्रीय मंत्री बनने का सौभाग्य अर्जित करने वाले भाजपाई डा. रमन सिंह का ही नाम क्यूं न हो.
डा. रमन सिंह केंद्रीय मंत्री रहते हुए पहले भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष और बाद में मुख्यमंत्री चुने गए थे. इस कारण उन्हें संसदीय चुनाव दोबारा लड़ने का मौका ही नहीं मिल पाया.
प्रदीप गांधी, मधुसूदन यादव अथवा अभिषेक सिंह ऐसे सांसद रहे कि उन्हें दूसरी बार भाजपा ने मैदान में उतारा ही नहीं. सांसद संतोष पांडेय इस मामले में सौभाग्यशाली हैं कि उन्हें दूसरा अवसर मिला.
यदि इस अवसर को भुनाने में सांसद संतोष पांडेय सफल हो जाते हैं तो वह इतिहास रच देंगे. तब वह पहले ऐसे सांसद होंगे जिनकी पृष्ठभूमि राज परिवार से नहीं बल्कि जन साधारण से जुडी़ हुई है.