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गुना। ग्वालियर राज घराने के चिराग, पूर्व कांग्रेसी, वर्तमान में भाजपा के केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया… इन दिनों बेहद परेशान हैं। दरअसल, उनके अपने ही समर्थक एक के बाद एक भाजपा छोड़कर कांग्रेस में वापसी करने आतुर नजर आते हैं। चाहकर भी सिंधिया अपने समर्थकों को रोक नहीं पा रहे हैं। ग्वालियर से लेकर गुना, शिवपुरी जैसे क्षेत्र में अब हर कोई यह सवाल कर रहा है कि क्या ज्योतिरादित्य सिंधिया का जादू खत्म हो रहा है ?
2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने भाजपा को हराकर 15 साल के अपने वनवास को राज्य में खत्म किया था। तब उम्मीद की जा रही थी कि कांग्रेस इस तरह के नतीजे का श्रेय ज्योतिरादित्य सिंधिया को देकर उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बिठाएगी लेकिन हुआ इससे उलट।
कांग्रेस ने तब मुख्यमंत्री का सेहरा प्रदेश अध्यक्ष रहे कमलनाथ के सिर पर बांध दिया। ज्योतिरादित्य सिंधिया एक तरह से अपमान का घूंट पीकर रह गए। धीरे धीरे समय बीता… कांग्रेस से जाने अनजाने हुई गलतियों ने ज्योतिरादित्य सिंधिया को बगावत करने मजबूर किया।
उनकी बगावत के मद्देनजर मप्र में कांग्रेस की सरकार गिर गई और फिर से शिवराज सिंह चौहान मुख्यमंत्री बन गए। ज्योतिरादित्य सिंधिया राज्यसभा का चुनाव लड़कर बीजेपी खेमे से वापस दिल्ली में सक्रिय हुए। एक बार फिर उन्हें केंद्र में मंत्री पद से भाजपा ने यह सोचकर नवाजा कि ज्योतिरादित्य सिंधिया आने वाले समय में मध्यप्रदेश में भाजपा को और मजबूती प्रदान करने के क्रम में उसका सहयोग करेंगे।
लेकिन समर्थक छोड़ रहे साथ
लेकिन सिंधिया के समर्थक 2023 के विधानसभा चुनाव आते आते उनका साथ छोड़ने लगे हैं। बीते 2-3 महीनों के दौरान शिवपुरी जिले से सिंधिया समर्थक तीन नेताओं ने पार्टी छोड़ दी है। शिवपुरी जिले में कुल जमा 5 विधानसभा सीट है।
कोलारस विधानसभा सीट से बैजनाथ सिंह यादव, रघुराज धाकड़, शिवपुरी विधानसभा क्षेत्र से राकेश गुप्ता भाजपा को टाटा बायबाय कर कांग्रेस ज्वाइन कर चुके हैं। जिला पंचायत शिवपुरी के पूर्व अध्यक्ष जितेंद्र जैन भी भाजपा से नाता तोड़ चुके हैं।
कमलनाथ और उनकी कांग्रेस की मध्यप्रदेश में सिंधिया समर्थकों को वापस कांग्रेस में लाना एक तरह से प्रमुखता में शामिल है। इन सब में दिग्विजय सिंह और उनके सुपुत्र जयवर्धन सिंह भी सिंधिया समर्थकों को भाजपा छोड़कर कांग्रेस में लाने में लगे हुए हैं। कमलनाथ और दिग्विजय सिंह का इस खेल के पीछे अपना कोई छिपा एजेंडा हो सकता है लेकिन क्षेत्र में चर्चा इस बात की हो रही है कि न तो सिंधिया और न ही उनकी भाजपा पार्टी छोड़कर जाने वालों को क्यों रोक नहीं पा रही है।
तो क्या सिंधिया का जादू खत्म हो रहा है? हालांकि ऐसा लगता नहीं है। बीते दिनों मध्यप्रदेश दौरे पर आए प्रधानमंत्री भोपाल से अपने साथ अपने विमान में सिंधिया को उड़ा ले गए थे। सिंधिया समर्थकों को भाजपा द्वारा बनाई गई चुनाव समितियों में भी जगह दी गई है।
राष्ट्रपति और गृहमंत्री ने सिंधिया के जय विलास पैलेस में भोजन कर उनका मान सम्मान बढ़ाया था। इन सबके बावजूद सिंधिया के मान सम्मान से परे उनके समर्थक यदि एक के बाद एक भाजपा छोड़ रहे हैं तो इसे सिंधिया की ही कमजोरी कहा जाएगा। और तो और सिंधिया के वजूद पर भी सवाल आने वाले दिनों में उठने लगेंगे।