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राजनांदगांव। विधानसभा चुनाव के मद्देनजर कांग्रेस ने सिक्खों को साधने के लिए अपनी एक विशेष रणनीति पर काम शुरू किया है। यदि सब कुछ ठीक रहा तो कांग्रेस राजनांदगांव जिले से सिक्ख उम्मीदवार को उतारकर भाजपा से इस समाज की नाराजगी का फायदा उठाना चाहेगी। सिक्ख मतदाताओं की सबसे बड़ी फौज राजनांदगांव विधानसभा क्षेत्र में बताई जाती है जहां से फिलहाल पार्टी विगत तीन चुनाव हारती आ रही है।
उल्लेखनीय है कि राजनांदगांव में 2008 से अब तक भाजपा जीतती रही है। 2008 में पहली बार प्रदेश के मुख्यमंत्री का निर्वाचन क्षेत्र होने का सौभाग्य राजनांदगांव को देने वाले डॉ.रमन सिंह 2013 और 2018 में भी राजनांदगांव से विधायक निर्वाचित हुए हैं।
नांदगांव क्यूं रणनीति में शामिल ?
पार्टी के जिम्मेदार पदाधिकारी बताते हैं कि राजनांदगांव कांग्रेस की विशेष रणनीति में शामिल है। चूंकि यह पूर्व मुख्यमंत्री डॉ.रमन सिंह का निर्वाचन क्षेत्र है इसकारण यहां से दमदार प्रत्याशी उतारना कांग्रेस की प्राथमिकता में रहा है।
बीते तीन चुनाव हालांकि इस बात की गवाही नहीं देते हैं। लेकिन इस बार पार्टी जिस रणनीति पर काम करती बताई जा रही है यदि वह रणनीति वाकई में है तो यह चुनाव भाजपा के साथ साथ डॉ.रमन के लिए भी निर्णायक हो सकता है।
जिले में इकलौता खुज्जी विधानसभा एक ऐसा क्षेत्र रहा है जहां से जातिवाद से परे सिक्ख समुदाय का विधायक चुने जाते रहा। जबकि इस विधानसभा क्षेत्र में सिक्ख समुदाय से जुड़े मतदाता गिनती के हैं। स्व.रजिंदरपाल सिंह भाटिया तीन मर्तबा खुज्जी का प्रतिनिधित्व कर चुके थे। 2003 में सरकार बनने के बाद उन्हें भाजपा की ओर से कुछ समय के लिए मंत्री पद भी दिया गया था।
हालांकि इसके बाद भाटिया भाजपा की पहली पसंद नहीं रहे। 2008 में उनके स्थान पर जमुना देवी को भाजपा ने टिकट दी थी जिन्हें कांग्रेस के भोलाराम साहू ने परास्त किया था। 2013 में भी जब भाजपा की टिकट भाटिया के हाथ नहीं लगी तो उन्होंने निर्दलीय चुनाव लड़कर भाजपा को तीसरे स्थान पर धकेल दिया था। 43179 वोट प्राप्त करने के बावजूद वह 51873 वोट अर्जित करने वाले भोलाराम साहू को पछाड़ नहीं सके थे।
2018 में कांग्रेस की ही छन्नी साहू ने भाजपा के हिरेंद्र साहू को परास्त किया था। मतलब साफ है कि खुज्जी में भाटिया परिवार का दबदबा कायम था जिसे भाजपा ने डिस्टर्ब करके खुद के पैर पर कुल्हाड़ी मार ली है। तीन विधानसभा चुनाव के नतीजे इस बात का उदाहरण है।
फिर भाजपा ने इस बार भी भाटिया के निधन के बावजूद उनके सुपुत्र जगजीत उर्फ लक्की भाटिया को टिकट नहीं देकर पूरे सिक्ख समाज को एक तरह से अपने खिलाफ कर दिया है। कांग्रेस की नजर सिक्ख समाज की इसी नाराजगी पर टिकी हुई है। लेकिन उसके लिए धर्मसंकट की स्थिति खुज्जी विधायक छन्नी साहू हो सकती है।
चूंकि छन्नी तेज तर्रार और अपने क्षेत्र में क्रियाशील विधायक मानी जाती है इसकारण उनकी टिकट काटकर किसी और समाज को टिकट देने के चलते कांग्रेस साहू समाज को अपने खिलाफ नहीं करना चाहेगी। अब जिस डोंगरगढ़ में सर्वाधिक सिक्ख मतदाता रहते हैं वह क्षेत्र आरक्षित श्रेणी का है इसकारण वहां से किसी सिक्ख को उतारना संभव नहीं है।
इसके बाद बचता है राजनांदगांव जहां से सिक्ख उम्मीदवार उतारकर डॉ.रमन के साथ साथ भाजपा की घेराबंदी कैसे की जा सकती है इस विषय पर इन दिनों कांग्रेस के भीतर माथापच्ची चल रही है। यदि वाकई ऐसा कुछ है और होता है तो कांग्रेस राजनांदगांव से सिक्ख उम्मीदवार उतार भी सकती है। अकेले राजनांदगांव क्षेत्र में तकरीबन 4400 सिक्ख मतदाता बताए जाते हैं।
इन मतदाताओं के नाते रिश्तेदार पूरे प्रदेश सहित देश के विभिन्न विभिन्न हिस्सों में रहते हैं। यदि कांग्रेस किसी सिक्ख उम्मीदवार को चुनाव मैदान में उतारने का साहस एनकेनप्रकारेन जुगाड़ लेती है तो राजनांदगांव विधानसभा का यह चुनाव पूरे प्रदेश के अलावा देश में चर्चा का विषय हो सकता है।