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जयपुर। जेलों में सुधार को लेकर सरकार कितनी गंभीर है इसका नजारा राजस्थान हाईकोर्ट में देखने को मिल रहा है। जेल सुधार से जुड़े मामले में राजस्थान सरकार ने अपनी पुरानी ही रपट हाईकोर्ट में प्रस्तुत कर दी। इस पर राज्य सरकार को कई बिंदुओं पर विस्तृत रपट प्रस्तुत करने के निर्देश उच्च न्यायालय की ओर से दिए गए।
मामला मुख्य न्यायाधीश (सीजे) एजी मसीह, जस्टिस समीर जैन की खंडपीठ में चल रहा है। हाईकोर्ट ने अधिवक्ता प्रतीक कासलीवाल को न्याय मित्र नियुक्त कर रखा है। कासलीवाल कहते हैं कि प्रदेश की जेल इस समय भारी भीड़ की समस्या से ग्रसित हैं।
न्याय मित्र प्रतीक के मुताबिक 60-70 साल पहले प्रदेश में केंद्रीय कारागार बने थे। फिलहाल ये वर्तमान स्थिति के हिसाब से नाकाफी साबित हो रहे हैं। प्रदेश की 9 सेंट्रल जेल शहरों के बीच में संचालित हो रही हैं।
16 नवंबर तक का समय
सीजे मसीह व जस्टिस जैन की खंडपीठ में मामले की सुनवाई के दौरान एक रोचक तथ्य उभरकर सामने आया। जेलों में फैली अव्यवस्था को लेकर हाईकोर्ट ने स्वप्रेरित संज्ञान लिया था।
उसने न्याय मित्र नियुक्त किया था। न्याय मित्र कासलीवाल ने ही कोर्ट को बताया कि इस बार भी सरकार ने वही पुरानी रपट प्रस्तुत की है जो कि जुलाई 2022 में पेश कर चुकी है। अब इस पर सवाल उठता है कि पुरानी रपट किस तरह से आज की समस्या का निदान करेगी ?
इस पर कोर्ट ने राज्य सरकार को तमाम बिंदुओं पर जवाब प्रस्तुत करने 16 नवंबर तक का समय दिया है। राज्य सरकार से उसने जानना चाहा है कि जेलों में होने वाली अप्राकृतिक मृत्यु पर मुआवजे का क्या प्रावधान है?
जेलों में उभरकर सामने आने वाली मोबाइल फोन की समस्या को खत्म करने क्या कुछ कदम उठाए जा रहे हैं इस पर भी जवाब मांगा है। मेडिकल भर्ती कब तक की जाएगी, वीसी व फिजिकली कितने कैदियों की पेशी हो रही है, जेलों में लगे सीसीटीवी कैमरे के रिकार्डिंग की क्या व्यवस्था है जैसे सवाल के जवाब सरकार से मांगे गए हैं।
इसके अलावा शहर के मध्य संचालित हो रहे जेलों पर भी हाईकोर्ट का ध्यान गया है। जयपुर सेंट्रल जेल सहित प्रदेश की 9 सेंट्रल जेल शहर के बीचोबीच संचालित हो रही है। हाईकोर्ट ने जानना चाहा है कि क्या सरकार इन जेलों को शहर से बाहर करने का विचार रखती है?