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राजनांदगांव। पूर्व मुख्यमंत्री डॉ.रमन सिंह को यदि उनकी पार्टी राजनांदगांव विधानसभा से चुनावी मैदान में नहीं उतारती है तो फिर यहां से किसे टिकट देगी ? यह सवाल इसलिए गंभीर हुए जा रहा है कि भाजपा का इस बार जोर सोशल इंजीनियरिंग पर ज्यादा नजर आ रहा है।
दरअसल, भाजपा के बीच मुख्यमंत्री डॉ.रमन सिंह को चुनाव लड़ाने, नहीं लड़ाने को लेकर कोई अंतिम निर्णय नहीं हो पाया है। भाजपा का एक खेमा जरूर यह चाहता है कि रमन सिंह चुनाव लड़ें लेकिन उनके लिए राजनांदगांव सीट से ज्यादा बेहतर विकल्प के तौर पर डोंगरगांव अथवा कवर्धा को बताया जा रहा है।
पार्टी के विश्वसनीय सूत्र बताते हैं कि ऐसा कर भाजपा इस बार डोंगरगांव अथवा कवर्धा सीट को जीतने का भरसक प्रयास करना चाहती है। दोनों ही सीटों पर इन दिनों कांग्रेस के विधायक काबिज हैं। डोंगरगांव विधानसभा क्षेत्र से दो बार के विधायक दलेश्वर साहू हैं। उन्हें तीसरी मर्तबा मैदान में उतारने की तैयारी चल रही है।
जबकि कवर्धा विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस के मोहम्मद अकबर जो कि प्रदेश के वनमंत्री भी हैं विधायक हैं। हालांकि मो.अकबर इसी कवर्धा विधानसभा क्षेत्र से 2013 का विधानसभा चुनाव हार गए थे। जब उन्हें भाजपा के अशोक साहू ने पराजित किया था। इन्हीं अशोक साहू को 2018 में अकबर ने हराकर विधानसभा से बेदखल किया था।
लोधी या फिर ओबीसी
राजनांदगांव सीट से यदि विधानसभा चुनाव लड़ने पूर्व मुख्यमंत्री डॉ.रमन सिंह को नहीं चुना जाता है तो फिर कौन होगा? भाजपा का सारा जोर इस बार सोशल इंजीनियरिंग पर टिका हुआ है। संभवत: इसी के मद्देनजर राजनांदगांव का भी फैसला होगा।
यदि रमन राजनांदगांव से किसी और सीट पर शिफ्ट किए जाते हैं तो राजनांदगांव से किसी ओबीसी या फिर लोधी वर्ग से जुड़े भाजपाई को टिकट मिल सकती है। लोधी वर्ग को टिकट देना राजनांदगांव में भाजपा चाहेगी क्योंकि उसने इस वर्ग की टिकट खैरागढ़ में काट दी थी।
उल्लेखनीय है कि खैरागढ़ विधानसभा क्षेत्र को लोधी बहुल माना जाता है। यहां से बीते दो चार चुनावों से लोधी प्रत्याशी भाजपा देते रही है। इस बार लेकिन उसने लोधी वर्ग की जगह जिला पंचायत उपाध्यक्ष विक्रांत सिंह को उतारकर इस गणित को परिवर्तित किया है।
विक्रांत सिंह न केवल डॉ.रमन के भांजे हैं बल्कि विधानसभा चुनाव लड़ने की चाहत उनमें काफी समय से थी। उन्हें मजबूत प्रत्याशी माना जा रहा है। विक्रांत सामान्य वर्ग से आते हैं। मतलब साफ है कि अब राजनांदगांव से सामान्य वर्ग के किसी प्रत्याशी को शायद ही टिकट मिले।
यदि लोधी वर्ग को राजनांदगांव से टिकट नहीं मिलती है तो सोशल इंजीनियरिंग पर अपने चुनावी गणित को लेकर आगे बढ़ रही भाजपा इस बार राजनांदगांव से ओबीसी वर्ग के किसी उम्मीदवार को चुनाव मैदान में उतार सकती है।
ओबीसी वर्ग से पूर्व सांसद मधुसूदन यादव व लोधी वर्ग से भरत वर्मा दावेदार हो सकते हैं। भरत पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष हैं व फिलहाल भाजपा में पिछड़ा वर्ग का दायित्व संभाल रहे हैं।
भाजपा ने जो पहली सूची जारी की है उनमें 21 प्रत्याशियों में से केवल 1 सामान्य वर्ग का है। 21 में से 11 आरक्षित सीटें हैं जबकि 10 सामान्य वर्ग की सीटें हैं। 10 सामान्य वर्ग की सीटों में से अन्य पिछड़ा वर्ग को टिकट देकर भाजपा ने इस वर्ग को साधने का पूरजोर प्रयास किया है।
बतौर उदाहरण भटगांव विधानसभा क्षेत्र को लिया जा सकता है। यहां पर इस बार भाजपा ने लक्ष्मी राजवाड़े को टिकट दिया है। पिछला चुनाव कांग्रेस के परसनाथ रजवाड़े ने भाजपा की रजनी त्रिपाठी को हराकर जीता था।
प्रेमनगर विधानसभा क्षेत्र सामान्य वर्ग से आता है। यहां से फिलहाल कांग्रेस के खेलसाय सिंह विधायक हैं। उन्होंने भाजपा के विजयप्रताप सिंह को पिछला चुनाव हराया था। इस सीट पर भाजपा ने सोशल इंजीनियरिंग करते हुए पूर्व जिला पंचायत सदस्य भूलन सिंह मरावी को अपनी ओर से प्रत्याशी बनाया है।
5 महिला प्रत्याशी वाली पहली सूची में खुज्जी विधानसभा क्षेत्र से भाजपा ने इस बार गीता घासी साहू को अपना उम्मीदवार बनाया है। गीता फिलहाल जिला पंचायत अध्यक्ष का दायित्व संभाल रही हैं। वह यदि कांग्रेस से छन्नी साहू को टिकट मिलती है तो उन्हें टक्कर देती नजर आएंगी। छन्नी ने पिछली बार हिरेंद्र साहू को हराया था।
अब चूंकि साहू समाज को खुज्जी विधानसभा सीट भाजपा दे चुकी है तो इसकारण उम्मीद है कि वह इस बार राजनांदगांव सीट से यदि रमन सिंह शिफ्ट होते हैं तो लोधी अथवा ओबीसी वर्ग को अपना प्रत्याशी बनाएगी। लेकिन यह सबकुछ रमन के शिफ्ट होने पर निर्भर है।