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राजनांदगांव। अविभाजित मध्यप्रदेश के समय से राजनांदगांव जिले की राजनीति में भाजपा का झंडा उठाने वाले लीलाराम भोजवानी ने जिले में भाजपा को टूटने से बचाया भी था। यदि लीलाराम भोजवानी सक्रिय नहीं होते तो स्व. रजिंदर पाल सिंह भाटिया संभवत: कांग्रेस प्रवेश कर चुके होते।
उल्लेखनीय है कि जिले की राजनीति में वटवृक्ष जैसा स्थान रखने वाले लीलाराम भोजवानी का बुधवार को रायपुर में उपचार के दौरान निधन हो गया। गुरूवार को यहां के लोगों ने उनके अंतिम दर्शन किए।
राज्य बना, जोगी मजबूत हुए
अचानक मध्यप्रदेश का विभाजन हो गया। कांग्रेस में भारी भरकम नेताओं के बावजूद अजीत जोगी मुख्यमंत्री बन मजबूत हो गए। जोगी के मुख्यमंत्री बनने के बाद छत्तीसगढ़ में तोड़फोड़ का सिलसिला जारी हुआ।
उस समय मुख्यमंत्री रहे अजीत जोगी की इच्छानुसार भाजपा के 12 विधायकों ने पार्टी छोड़ दी थी। उसमें रायपुर के कद्दावर नेता रहे तरुण चटर्जी, आरंग के गंगूराम बघेल प्रमुख थे। दोनों नेता फिर चुनाव नहीं जीत पाए।
स्व. चटर्जी व बघेल के अलावा श्यामा ध्रुर्वा, मदन डहरिया, प्रेमसिंह सिदार, लोकेंद्र यादव, हरिदास भारद्वाज, रत्नामाला, परेश बागबाहरा और सोहनलाल ने भाजपा को छोड़कर अचानक कांग्रेस प्रवेश किया था। तब राजनांदगांव जिले का भी नाम इसमें सुनाई दिया था।
बताया जाता है कि तब खुज्जी विधायक रहे स्व.रजिंदरपाल सिंह भाटिया भाजपा छोड़कर 12 विधायकों के साथ कांग्रेस में शामिल होने वाले थे। किसी तरह से कहीं से यह खबर लीलाराम भोजवानी के कानों तक पहुंची।
स्व. भोजवानी सक्रिय हुए और उन्होंने छुरिया से निकले स्व. भाटिया को हाइवे पर राजनांदगांव पहुंचने के पहले ही रोक लिया। तय समय पर भाटिया उस खेमे में शामिल नहीं हो पाए जो कि अजीत जोगी के इशारे पर कांग्रेसी बनने चला था।
इधर भोजवानी की समझाइश और भाजपा के दिग्गज नेताओं से कराई गई बात के चलते स्व.भाटिया ने भी अपना मन बदल लिया था। अंतत: रजिंदरपाल सिंह भाटिया कांग्रेस में शामिल नहीं हो पाए और वह भाजपा में ही बने रहे।
2003 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने ऐतिहासिक जीत हासिल की। खुज्जी विधायक बनने का सौभाग्य रजिंदरपाल सिंह भाटिया को पुन: मिला। डॉ.रमन सिंह पहली मर्तबा भाजपा की ओर से छग के मुख्यमंत्री चुने गए। सिंह ने अपने मंत्रिमंडल में भाटिया को भी स्थान दिया।