नेशल अलर्ट/www.nationalert.in
रायपुर/जगदलपुर। कभी प्रमुख राष्ट्रीय दलों के सदस्य रहे अरविंद नेताम की एक मंशा ने उन्हें दल्ली से दिल्ली तक चर्चा में ला दिया है। 90 विधानसभा सीट वाले छोटे से राज्य में आरक्षित वर्ग की सीटों पर चुनाव लड़ने की उनकी रणनीति ने प्रमुख दलों को सोचने समझने मजबूर कर दिया है। यदि थोड़ी भी ऊंच-नीच हुई तो परिणाम क्या से क्या हो जाएंगे इसका भान लगाने के प्रयास में इन दिनों ये दल लगे हुए हैं।
अरविंद नेताम नाम का यह व्यक्ति अपने जीवन के इन दिनों को आदिवासी अस्मिता से जोड़कर देख रहा है। इसने घोषणा कर रखी है कि आदिवासियों के लिए आरक्षित सभी सीटों के अलावा जिन विधानसभा क्षेत्रों में आदिवासी मतदाताओं की संख्या निर्णय को प्रभावित करने वाली रहेगी उन सभी सीटों पर सर्व आदिवासी समाज के बैनर तले अपने प्रत्याशी उतारेंगे।
चार बार सांसद रह चुके हैं नेताम
दरअसल अरविंद नेताम की यह घोषणा इस कारण गंभीर हो जाती है कि इस मर्तबा कांग्रेस और भाजपा के लिए विधानसभा चुनाव की यह लड़ाई बेहद गंभीर है। ऐसे में चार बार सांसद रहे अरविंद नेताम ने आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित 29 सीटों पर समाज के प्रत्याशी उतारने की घोषणा कर सोचने समझने मजबूर कर दिया है।
उल्लेखनीय है कि नेताम सर्व आदिवासी समाज के संरक्षक हैं। इंदिरा गांधी और नरसिम्हा राव की सरकार में नेताम मंत्री भी रह चुके हैं। 1996 में उन्हें कांग्रेस से निकाला गया था। छत्तीसगढ़ के वरिष्ठ आदिवासी नेताओं में शामिल नेताम की बस्तर संभाग में आदिवासियों के बीच पूछपरख भी है।
नेताम की इस रणनीति का क्या कुछ असर होगा इस पर अभी किंतु परंतु भले ही लग रहा हो लेकिन इतना तय है कि इसके दूरगामी नतीजे हो सकते हैं। बस्तर की 12 विधानसभा सीटों पर कांग्रेसी विधायक काबिज हैं। इनमें से कुछ के प्रति गंभीर नाराजगी बताई जाती है।
यदि कांग्रेस अपने इन विधायकों को टिकट नहीं भी देती है तो भी पार्टी के प्रति नाराजगी कम होने का नाम लेगी कि नहीं यह भले ही भविष्य के गर्त में है लेकिन इतना तय है कि सर्वआदिवासी समाज से उसे इस बार मुकाबले में अंतिम चरण तक टक्कर मिलेगी।
जैसे कि भानुप्रतापपुर विधानसभा उपचुनाव में सर्वआदिवासी समाज के प्रत्याशी रहे अकबर राम कोर्राम ने अंतिम समय तक टक्कर देने में कोताही नहीं बरती थी वैसा ही यदि इस बार घटित हुआ तो कुछ भी हो सकता है।
उल्लेखनीय है कि भानुप्रतापपुर में 19 चरणों तक विधानसभा उपचुनाव की मतगणना हुई थी जिसमें कोर्राम ने 23 हजार 371 वोट अर्जित किए थे। भले ही कांग्रेस प्रत्याशी रहीं सावित्री मंडावी ने 65 हजार 337 वोटों के साथ जीत हासिल की थी लेकिन क्रमश: द्वितीय, पंचम, सप्तम चरण की मतगणना में कोर्राम ने उन्हें सोचने समझने मजबूर कर दिया था।
कुल जमा नतीजा यह रहा कि 44229 वोट अर्जित करने के बावजूद भाजपा के ब्रम्हानंद नेताम चुनाव हार गए। यदि सर्वआदिसमाज के समर्थन से कोर्राम मैदान में नहीं होते तो उनका प्रदर्शन संभवत: कुछ और होता। भाजपा और कोर्राम के मतों को जोड़ दिया जाए तो यह आंकड़ा 67600 मतों का होता है।
इसके अलावा कई ऐसे विषय हैं जिस पर आदिवासी वर्ग की नाराजगी अभी तक कायम है। भले ही वह विषय फिलहाल प्रभावी नहीं लगे लेकिन चुनाव में अपना असर तो दिखाएंगे ही। नेताम ने संभवत: अपने जीवन का सबसे बड़ा निर्णय लेते हुए समाज को चुनाव से जोड़कर रख दिया है।
आने वाले समय में नेताम की यह मंशा क्या गुल खिलाएगी इस पर दो प्रमुख दलों की राजनीतिक रणनीति का गुणाभाग में लगे हुए हैं। देखना यह है कि प्रदेश की 29 आदिवासी आरक्षित सीटों के अलावा इस वर्ग के मतदाताओं की बहुलता वाली सीटों पर नेताम और उनका सर्वआदिवासी समाज क्या कुछ कैसा प्रदर्शन करता है।