नेशन अलर्ट/रायपुर.
प्रदेश की खस्ताहाल सड़कें इन दिनों सुर्खियां बटोर रही हैं। मुद्दा इतना गंभीर हो चला है कि मुख्यमंत्री को स्वयं लोक निर्माण विभाग (पीडब्ल्यूडी) के मुख्य अभियंता (ईएनसी) के प्रभार से व्हीके भतपहरी को हटाने का आदेश देना पड़ा था। तब केके पीपरी की किस्मत खुल गई थी। उन्हें ईएनसी का प्रभार मिल गया लेकिन यही प्रभार उन्हें आने वाले दिनों में अपनी कार्य क्षमता साबित करने में नाको चने चबवाने जैसा प्रतीत हो सकता है।
उल्लेखनीय है कि छत्तीसगढ़ इन दिनों खराब सड़कों के मामले में देश में बेहद खराब स्थिति रखता है। क्या राष्ट्रीय राजमार्ग (एनएच) और क्या राज्य राजमार्ग (एसएच)… दोनों के दोनों अपनी किस्मत पर आंसू बहाने मजबूर हैं। सबसे ज्यादा परेशानी उन जनप्रतिनिधियों को हो रही है जिनके इलाकों की सड़कें बद से बदतर हो चली है। जनप्रतिनिधि इस बात को लेकर फिक्रमंद हैं कि खराब सड़कें कहीं चुनावी मुद्दा न बन जाए।
पैसे हैं तो क्यूं नहीं बन रही सड़कें
सरकार कहते रही है कि उसके पास फंड की कहीं कोई कमी नहीं है। फिर सवाल इस बात का उठता है कि खराब सड़कें बनने में क्यूंकर परेशानी हो रही है? सर्वाधिक शिकायत पत्थलगांव, जशपुर, सरगुजा, कोरबा, रायगढ़, बिलासपुर जिलों की सड़कों को लेकर बताई जाती है। इन क्षेत्रों के छोटे-बड़े हर स्तर के नेता अपने यहां की जनता को होने वाली परेशानी के मद्देनजर कई मर्तबा सड़क सुधार की मांग कर चुके हैं लेकिन सड़क है कि सुधरती ही नहीं है।
विभागीय जानकारी बताती है कि छत्तीसगढ़ ग्रामीण सड़क के तहत पांच हजार पांच सौ करोड़ रूपए मूल्य से ज्यादा की सड़कों का निर्माण होना है। मुख्यमंत्री सुगम सड़क योजना अंतर्गत 435 सड़कें बनने के लिए प्रस्तावित हैं। इस पर 495 करोड़ रूपए का खर्च होगा। एलडब्ल्यूई के तहत छत्तीसगढ़ में 291 सड़कें बनेंगी। रायगढ़, सरगुजा, जशपुर ऐसे जिले हैं जहां कि तकरीबन 200 से ज्यादा सड़क दरअसल, सड़क नहीं बल्कि गड्ढों में तब्दील हो चुकी है।
जिस रायगढ़ जिले के दौरे पर मुख्यमंत्री को खराब सड़कों को लेकर जनमानस से शिकायत मिलने पर ईएनसी को हटाने का निर्णय लेना पड़ा उस रायगढ़ जिले में 437 करोड़ रूपए से ज्यादा के काम होने हैं लेकिन हो नहीं पा रहे हैं। ऐसा क्यूंकर हो रहा है? दरअसल, विभागीय जानकारी बताती है कि सड़कों की मरम्मत के लिए 700 करोड़ रूपए जारी किए जा चुके हैं लेकिन अभी तक निविदा की प्रक्रिया पूरी नहीं हो पाई है इसकारण दिक्कत हो रही है।
150 से ज्यादा सड़क छत्तीसगढ़ में ऐसी हैं जो कि गत वर्ष ही बनी थी। इन सड़कों का निर्माण कैसे और किस आधार पर हुआ था यह समझने दिमाग पर कोई ज्यादा जोर लगाने की जरूरत नहीं है। ये सड़कें पिछले साल बनीं और इस साल बारिश में टूट गई। मतलब साफ है कि गुणवत्ता से कही न कही समझौता हुआ होगा।
सात साल में पूरा नहीं हुआ काम
ज्ञात हो कि रायगढ़ से सरायपाली जाने वाला मार्ग नेशनल हाइवे क्रमांक 7 कहलाता है। मार्ग की कुल लंबाई 81 किमी है। सात साल पहले इस मार्ग का काम शुरू हुआ था जो कि आज दिनांक तक पूरा नहीं हो पाया है। कारण क्या है ? अधिकारी पूछने पर बताते हैं सात साल पहले जिस एरा कंपनी को ठेका दिया गया था वह काम अधूरे में छोड़कर भाग गई।
इसके बाद यही काम चार साल पहले ग्रोवर कंस्ट्रक्शन के हवाले किया गया।दिल्ली की बताई जाने वाली इस कंपनी ने तकरीबन चार साल पहले इस काम को लिया था लेकिन पिछले ही साल इसने भी काम अधूरे में छोड़ दिया। मतलब सात साल के दौरान दो ठेकेदार काम छोड़कर भाग खड़े हुए लेकिन 81 किमी लंबा मार्ग अब तक पूरी तरह से बन नहीं पाया। अधिकारी बताते हैं कि अभी भी इस मार्ग के 18 किमी लंबे हिस्से पर काम होना शेष है।
अधिकारिक जानकारी कहती है कि एक बार फिर से इसका टेंडर बुलाना पड़ेगा। टेंडर की यह प्रक्रिया पूरी करने की जिम्मेदारी नेशनल अथॉरिटी दिल्ली के पास ही है। तब तक छत्तीसगढ़ के स्थानीय अधिकारियों ने सड़क की मरम्मत के लिए एक प्रस्ताव भेजा था। 26 करोड़ का बताया जाने वाला यह प्रस्ताव यह कहकर खारिज कर दिया गया कि लागत अधिक है। 26 से सीधे 8 करोड़ पर आकर एक और प्रस्ताव बनाकर भेजा गया वह भी रद्द कर दिया गया।
इसके बाद इस साल अगस्त में ही 4.40 करोड़ और 2 करोड़ रूपए के दो अलग अलग प्रस्ताव बनाकर भेजे गए। प्रस्ताव मंजूरी की बाट जोहते हुए धूल खाते पड़े हैं। रायगढ-सरायपाली राष्ट्रीय राजमार्ग का यह हिस्सा अब लोगों के चलने लायक भी नहीं रह गया है। कुछ इसी तरह की स्थिति छाल-घरघोड़ा, खरसिया-धर्मजयगढ़, लैलूंगा-रायगढ़ व पत्थलगांव-रायगढ़ मार्ग की बताई जाती है। इन्हीं सड़कों की मरम्मत की मांग को लेकर इन दिनों भारतीय जनता युवा मोर्चा ने आंदोलन छेड़ रखा है।
अमित साहू की जगह भाजयुमो का प्रदेश अध्यक्ष बनाए जाने के बाद रवि भगत बीते कुछ दिनों से रायगढ़ के आसपास खराब सड़कों को लेकर आंदोलन पर हैं। सड़क बनाने की मांग करते हुए रवि भगत ने अभी हाल ही में पदयात्रा की थी। और तो और उन्होंने ग्राम सरिया में पीडब्ल्यूडी की शवयात्रा भी निकाल दी थी। बीते सोमवार को ही प्रदेश के पूर्व अध्यक्ष विष्णुदेव साय के साथ उन्होंने रायगढ़ कलेक्टोरेट में इसी विषय को लेकर अपर कलेक्टर को ज्ञापन भी सौंपा था। तकरीबन यही हाल नवगठित सारंगढ़ जिले की आंतरिक सड़कों का बताया जाता है। वहां बरमकेला में लेंथ्रा रोड से जनपद कार्यालय तक पीडब्ल्यूडी की शवयात्रा निकाली जा चुकी है।
नेशनल हाइवे में बतौर इंजीनियर पदस्थ बीएस भदौरिया बताते हैं कि चंद्रपुर के बाद की 14 किमी लंबी सड़क फिलहाल वैकल्पिक इंतजाम के भरोसे चल रही है। रायगढ़ से चंद्रपुर तक की 4 किमी लंबी सड़क को भी बनाने की बात करने वाले भदौरिया बताते हैं कि सरायपाली तक 81 किमी लंबी सड़क का वेल्युएशन नहीं हो पाया है। इसके अभाव में जो टेंडर प्रक्रिया रूकी है उसे पूरा होने में ये साल लग सकता है।
अधिकारिक जानकारी के अनुसार कास्ट ऑफ स्कोप (सीओएस) के तहत जमा राशि से ही मरम्मत करानी पड़ती है। जैसे की एरा कंपनी भाग गई तो उसकी सीओएस राशि के 30 करोड़ रूपए केंद्र सरकार के समक्ष जमा है लेकिन वहां से मरम्मत की अनुमति नहीं मिल पा रही है इसकारण काम रूका हुआ है।
बहरहाल, मुद्दा अब गंभीर हुए जा रहा है। अगले साल विधानसभा चुनाव होने को है। यदि यही हाल रहा तो छत्तीसगढ़ की खराब सड़कें चुनावी मुद्दा बन जाएगी। यदि ऐसा हुआ तो कांग्रेस को फिर ऐसा झटका लगेगा जो कि उसे अविभाजित मध्यप्रदेश के समय लग चुका है। तब मुख्यमंत्री रहे दिग्विजय सिंह के कार्यकाल में सड़कों के मसले पर भाजपा ने इतना बड़ा आंदोलन खड़ा किया था कि कांग्रेस सत्ता से सीधे पन्द्रह साल के लिए बाहर हो गई थी।