छोटे बड़े, नए पुराने गैंग फिर एक्टिव हुए
नेशन अलर्ट/राजनांदगांव.
जिस नगरी को संस्कारधानी के नाम से पुकारा जाते रहा है वहां अपराध जगत पैर पसार रहा है। मुक्तिबोध, बक्शी और चोटिया जी जैसे नामी गिरामी साहित्यकारों की नगरी आज अपनी पहचान चाकू, छुरी, कट्टा, रिवाल्वर जैसे हथियारों के साथ गांजा, अफीम से आगे हेरोइन, ब्राउन शुगर और स्मैक चाहने वालों के शहर के रूप में रखती है। नए पुराने गैंग के एक बार फिर से सक्रिय हो जाने के चलते आशंका जताई जा रही है कि गैंगवार की दहलीज पर संस्कारधानी नगरी खड़ी है।
नए पुराने और छोटे बड़े तमाम तरह के दादाओं, मवालियों और गुंडों को पालने वाले लोकल डॉन एक बार फिर से राजनांदगांव में नजर आने लगे हैं। इनकी यहां वापस से मौजूदगी ही किसी नई घटना के होने की ओर आशंका पैदा करती है। बताया तो यह तक जाता है कि अपने आप को डॉन कहलाने वाले विश्वकर्मा और नेपाली जैसे लोकल गैंगस्टर फिर नांदगांव की भूमि पर अपने कारनामें दिखाने की कोशिश में जुटे हुए हैं।
पुलिस से बड़ा कोई गुंडा नहीं
नेशन अलर्ट के यह शब्द नहीं है बल्कि छत्तीसगढ़ में पदस्थ अखिल भारतीय पुलिस सेवा के एक वरिष्ठ अधिकारी के शब्द हैं। वे कहते हैं कि पुलिस यदि अपनी पर आ जाए तो उसके जैसे गुंडागर्दी चाहे वह नैतिक हो या अनैतिक कोई नहीं कर सकता। उन्होंने राजनांदगांव में तकरीबन इसी तरह से कार्य भी किया था।
इसके बाद राज्य पुलिस सेवा के एक अधिकारी डॉ.रमन सिंह के कार्यकाल में राजनांदगांव में पदस्थ रहे थे। उन्होंने भी गुंडो, मवालियों को या तो भगा दिया था या फिर अपने साथ कर लिया था। उस दौरान बहुत से गलत काम भी हुए थे लेकिन राजनांदगांव में अपराध और अपराधी तत्व एक तरह से पुलिस के नियंत्रण में थे।
अब जबकि नए जमाने, नए समय की नई पुलिस है तो यहां एक बार फिर से गैंगवार की आशंका पनपने लगी है। इसका कारण जानकार बताते हैं कि राजनांदगांव में जमीन के बड़े सौदे एक बार फिर से शुरू हो गए हैं। जमीन लेने और दिलाने के नाम पर लोकल डॉन अपने गुर्गों के सहारे दबाव बनाते हैं। यदि कोई एक दूसरे के काम में हाथ डालता है तो फिर गैंगवार की स्थिति निर्मित होती है।
जानकार स्पष्ट करते हैं कि यही स्थिति इन दिनों राजनांदगांव में निर्मित हो रही है। हालांकि राजनांदगांव पुलिस बहुत हद तक सक्रिय और जिम्मेदार नजर आती है लेकिन वह अपराध होने के पहले उसे रोक देने की कोई तरकीब नहीं जानती है। राजनांदगांव एसपी प्रफुल्ल ठाकुर के अधीन जो टीम काम कर रही है वह अपराध के निकाल में जितनी सफल है उतनी सफल अपराधिक योजनाओं के बनने और बनाने को रोकने के मामले में नजर नहीं आती है।
बहरहाल, राजनांदगांव की फिजा इन दिनों जो बदली हुई नजर आ रही है वह तूफान के पहले की शांति है। राजनांदगांव में अपराध जगत को नजदीक से देखने वाले एक सेवानिवृत्त पुलिस अधिकारी जो कि हवलदार से लेकर उप निरीक्षक के पद तक पहुंचे थे बताते हैं कि छ:-आठ महीने की यह शांति तब विस्फोटक रूप लेगी जब चुनाव को नजदीक आता देखकर इन लोकल गुंडों को राजनीतिक दलों का समर्थन मिलना चालू हो जाएगा। मतलब शांति तभी तक की है..!