…अंत में पूर्व डीजीपी, गृह सचिव ने हाईकोर्ट से माफी मांग ली
नेशन अलर्ट/छुरिया/बिलासपुर.
नक्सली हमले को नाकाम कर देने को लेकर जिस पुलिस अधिकारी को अविभाजित मध्यप्रदेश के समय सरकार ने तब पदोन्नत कर पुरस्कृत किया था वही अधिकारी अपने खिलाफ चल रही एक विभागीय जांच में छत्तीसगढ़ में उत्पीडि़त होते रहा। जब उसने हाईकोर्ट में याचिका लगाई तो हाईकोर्ट ने जो निराकरण का आदेश दिया था वह भी 18 महीने तक धूल से सराबोर होते रहा। इस पर जब वह फिर हाईकोर्ट पहुंचा तो प्रदेश के तत्कालीन पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) सर्वश्री डीएम अवस्थी व प्रदेश के गृह सचिव सर्वश्री सुब्रत साहू ने हाईकोर्ट में बिना किसी शर्त के माफी मांग ली।
बिलासपुर जिले में एक थाना है। इस थाने का नाम तखतपुर थाना है। इसी थाने में 2007 में बतौर थानेदार निकोलस खलको नाम के पुलिस अधिकारी पदस्थ थे। तब उनके खिलाफ एक विभागीय जांच शुरू हुई थी। जांच के आदेश तत्कालीन बिलासपुर आईजी के द्वारा जारी किए गए थे।
वर्ष रहा होगा 2009… इस दौरान निकोलस खलको को आरोप पत्र जारी कर उनके खिलाफ जांच बिठाई गई थी। यह जांच एक शिकायत के आधार पर हो रही थी। जांच पर कहीं कोई आपत्ति नहीं है लेकिन जांच की अवधि पर जरूर आपत्ति है क्यूंकि 2009 में शुरू हुई जांच 2019 तक खत्म होने का नाम ही नहीं ले रही थी।
दस साल बाद 2019 में गृह विभाग के सचिव को कारण बताओ नोटिस जारी करने का ख्याल आया। उन्होंने दंड का आदेश पारित करने क संदर्भ में जवाब मांगा था। तब तक निकोलस खलको नामक यह अधिकारी जांच में हो रहे अत्यधिक विलंब से पीडि़त हो गया था। थक हारकर उसने हाईकोर्ट का रूख किया।
क्या आदेश दिया था हाईकोर्ट ने
अधिवक्ता अभिषेक पांडे व घनश्याम शर्मा के माध्यम से निकोलस खलको ने हाईकोर्ट में एक रिट याचिका लगाई। 2019 की 16 जुलाई को हाईकोर्ट से एक आदेश भी हो गया। यह आदेश विधि के अनुसार प्रकरण का अंतिम निराकरण करने के संदर्भ में था।
हाईकोर्ट के आदेश के बावजूद इस पर किसी तरह की कोई कार्यवाही नहीं की गई। निकोलस खलको इससे और व्यथित हुए। इसी व्यथा में उन्होंने प्रदेश के तत्कालीन डीजीपी सर्वश्री दुर्गेश माधव अवस्थी जिन्हें पुलिस विभाग डीएम अवस्थी के नाम से पुकारते रहा है सहित गृह सचिव सुब्रत साहू के खिलाफ अवमानना याचिका दायर कर दी।
इधर याचिका दायर हुई और उधर तत्कालीन डीजीपी व होम सेक्रेटरी को नोटिस जारी हो गई। अपने खिलाफ अवमानना की जारी की गई नोटिस के स्वयं को मिलते ही तत्कालीन डीजीपी व होम सेक्रेटरी ने याचिकाकर्ता के खिलाफ चल रही विभागीय जांच की कार्यवाही को निरस्त कर दिया। अब चूंकि मामला हाईकोर्ट में था इसकारण 29 अगस्त को सुनवाई हुई।
न्यायालयीन सेवा से जुड़े सूत्र बताते हैं कि इस सुनवाई में हाईकोर्ट के आदेश का पालन न कर अवमानना याचिका दायर होने की प्रतीक्षा करते रहने की बात पर उक्त अधिवक्ताओं ने हाईकोर्ट में गंभीर आपत्ति लगाई। हाईकोर्ट की अवमानना नोटिस जारी होने के डेढ़ साल के बाद आदेश का पालन किया गया जिसे हाईकोर्ट ने बेहद गंभीरता से लिया।
तत्कालीन डीजीपी दुर्गेश माधव अवस्थी मामले में स्वयं को फंसता देखकर माफी पर उतर आए। उन्होंने गृह सचिव सुब्रत साहू के साथ बिना किसी शर्त के माफी मांगने का माफीनामा आवेदन हाईकोर्ट में प्रस्तुत किया। वह तो भला हो हाईकोर्ट का कि उसने इसे स्वीकार कर याचिका का निराकरण कर दिया।
क्या है छुरिया कनेक्शन
उल्लेखनीय है कि निकोलस खलको बतौर उप निरीक्षक छुरिया थाने में पदस्थ हुआ करते थे। वह अविभाजित मध्यप्रदेश का समय था। नक्सलवाद अपनी चरम पर था। उसी दौरान छुरिया थाने में दिनदहाड़े नक्सलियों ने हमला बोल दिया था। उस समय राजनांदगांव के पुलिस अधीक्षक डीसी सागर व जिलाधीश लक्ष्यधारी सिंह बघेल हुआ करते थे। स्वयं तक मदद पहुंचने के पूर्व निकोलस खलको ने अपनी जान को जोखिम में डालकर महज चार सिपाहियों के साथ नक्सलियों को मुंहतोड़ जवाब दिया था। जवाब की इसी कार्यवाही में नक्सलियों का कमांडर विक्रम मारा गया था।
बाद में खलको को अविभाजित मध्यप्रदेश सरकार ने पदोन्नत कर टीआई बना दिया था। तब उन्हें जो ईनाम की राशिमिली थी वह भी समय पर नहीं मिल पाई थी। टीआई से पदोन्नत होकर वह उप पुलिस अधीक्षक (डीएसपी) के पद पर बिलासपुर में पदस्थ थे।