मृत्युंजय
नेशन अलर्ट/रायपुर.
छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की ‘संभावित पदोन्नति’ ने यहां से लेकर दिल्ली तक के भाजपाईयों को चिंता में डाल दिया है। यदि कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष भूपेश बघेल बन जाते हैं तो भाजपा के हाथ से कौन कौन से मुद्दे छिन जाएंगे इस पर अभी से विचार विमर्श हो रहा है।
कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष चुनने की प्रक्रिया इन दिनों जारी है। कांग्रेस अभी अंतरिम अध्यक्ष के अधीन कार्य कर रही है। दरअसल, राहुल गांधी ने 2019 के लोकसभा चुनाव में मिली करारी हार के बाद राष्ट्रीय अध्यक्ष का दायित्व यह कहते हुए छोड़ दिया था कि अब किसी और को अध्यक्ष चुन लिया जाना चाहिए।
चूंकि कांग्रेस में गांधी परिवार का दबदबा रहा है इसकारण श्रीमति सोनिया गांधी को अंतरिम अध्यक्ष बनाकर कांग्रेस ने काम चलाऊ व्यवस्था की थी। सोनिया अब स्वास्थ्य संबंधी कारणों से बेहद परेशान रहती हैं। ऊपर से वह पहले ही 14 मार्च 1998 से 16 दिसंबर 2017 तक कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष रह चुकी हैं। अब वह पुन: इस पद को संभालने न तो रूचि रखती हैं और न ही इसकी कोई संभावना नजर आती है।
क्यूं भूपेश बघेल का उभरा नाम ?
सवा सौ साल से ज्यादा पुरानी पार्टी कांग्रेस में इन दिनों संभावित नए अध्यक्ष के नाम को लेकर विचार विमर्श का दौर जारी है। राहुल गांधी के एकतरफा इनकार के बाद पहले राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से लेकर मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ से होते हुए पूर्व लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार, पूर्व केंद्रीय मंत्री सुशील कुमार शिंदे, पूर्व केंद्रीय मंत्री अंबिका सोनी, मीडिया इंचार्ज जयराम रमेश, राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे जैसे अनगिनत नामों पर चर्चा हुई लेकिन किंतु परंतु आड़े आ गया।
अब छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का नाम बड़ी तेजी से उभर रहा है। जितनी तेजी से भूपेश का नाम कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष के बतौर उभर रहा है उतनी ही तेजी से भाजपाईयों के चेहरे चिंताग्रस्त हुए जा रहे हैं। क्या कारण है कि भूपेश बघेल के नाम को लेकर भाजपा सोच में डूबी हुई है ? किन कारणों से भूपेश भाजपा के लिए परेशानी का सबब बन गए हैं ? भूपेश बघेल के नाम में ऐसा क्या है जिससे भाजपा की नींद उड़ी हुई है ?
भाजपा की बड़ी हार का कारण हैं भूपेश
भाजपा भूपेश बघेल से दरअसल इसकारण घबराती है कि वह उसकी बहुत बड़ी हार का कारण थे। अक्टूबर 2014 से प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष का दायित्व संभालने के बाद भूपेश बघेल ने राज्य में कांग्रेस को पुनर्जीवित करने में न केवल कामयाबी हासिल की बल्कि भाजपा को उसी के शब्दों में जवाब देना प्रारंभ किया।
झीरम के नक्सली हमले में जब पार्टी अपने आला नेताओं सर्वश्री विद्याचरण शुक्ल, नंदकुमार पटेल, महेंद्र कर्मा, उदय मुदलियार जैसे चेहरों को खो चुकी थी तब भूपेश ने मरणासन्न स्थिति में पहुंच चुकी कांग्रेस का दायित्व संभाला था। इसी दौरान अंतागढ़ विधानसभा उपचुनाव का वह दौर आया जिस दौर में ऑडियो टेपकांड के बाद पहले अमित जोगी कांग्रेस से बाहर किए गए और उसके बाद उनके पिताश्री पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने न चाहते हुए कांग्रेस छोड़ दी।
अजीत जोगी के कांग्रेस से पृथक हो जाने के बाद भूपेश बघेल ने कांग्रेस के भीतर और बाहर ऐसी राजनीति की है कि कोई उनके आगे टिक नहीं पाया। भूपेश के अध्यक्ष रहते हुए ही वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने छत्तीसगढ़ में जीत का ऐसा परचम लहराया कि निकट भविष्य में उस स्थिति तक पहुंचने में कोई दल सक्षम नजर नहीं आता है।
17 दिसंबर 2018 को मुख्यमंत्री चुने गए भूपेश बघेल ने इसके बाद किसानों का ऋण माफ करने और धान के समर्थन मूल्य में 50 फीसदी की वृद्धि कर भाजपा को चारों खाने चित कर दिया। आने वाले दिनों में उन्होंने तेदूपत्ता संग्रहण की कीमतों में वृदि्ध की। टाटा द्वारा अधिग्रहित की गई भूमि किसानों को वापस कर उन्होंने आदिवासी कृषकों का दिल जीत लिया।
नरवा, गरूवा, घुरवा, बारी जैसी योजनाओं के वास्तुकार भूपेश बघेल ने भाजपा से एक के बाद एक मुद्दे छिन लिए। कौशिल्या के राम का नारा देकर उन्होंने अपने आप को रामभक्त भी साबित किया। रामवनपथ गमन योजना चलाकर उन्होंने अयोध्या के राम के समतुल्य कौशिल्या के राम को स्थापित किया।
इसके बाद भूपेश ने गोबर खरीदी कर गौपालक किसानों को अतिरिक्त आय का जरिया दिया। अभी गोबर खरीदी की चर्चा थमी भी नहीं थी कि इसके तुरंत बाद उन्होंने गौमूत्र खरीदी की योजना चालू कर दी। ये ऐसी योजनाएं हैं जो कि भाजपाई नेताओं के भाषणों में तो नजर आती है लेकिन धरातल पर अपने आप को हिंदुओं की पार्टी बताने वाली भाजपा के कार्यकाल में कहीं नजर नहीं आई।
भूपेश बघेल ने प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना के उलट राजीव गांधी किसान न्याय योजना चालू कर किसानों को आर्थिक सहायता प्रदान कर उन्हें आर्थिक रूप से संपन्न करने का दायित्व उठाया है। यह योजना प्रधानमंत्री की योजना से ज्यादा बेहतर नजर आती है। नरवा, घुरूवा, बारी जैसी योजना की तारीफ स्वयं प्रधानमंत्री ने मुख्यमंत्रियों की बैठक में किया था।
आक्रामक तेवर, उम्र का साथ मिला
23 अगस्त 1961 को जन्में भूपेश बघेल छत्तीसगढ़ के पहले ऐसे मुख्यमंत्री हैं जिन्होंने विधायक बनने के बाद मुख्यमंत्री बनने का सौभाग्य प्राप्त किया है। उनके पहले अजीत जोगी और डॉ. रमन सिंह छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रह चुके थे लेकिन उन्होंने मुख्यमंत्री बनने के बाद उप चुनाव जीतकर विधानसभा की सदस्यता ग्रहण की थी।
उनकी उम्र कांग्रेस की राजनीति के हिसाब से कोई बहुत ज्यादा नहीं है। वह सबसे जोशीले और आक्रामक नेता माने जाते हैं। उनके तेवर ऐसे होते हैं कि उसमें राजनीति का अनुभव, बुद्धि और कुशल नीतियों की सोच नजर आती है। 90 में से 69 विधानसभा सीट जीतकर उन्होंने अपने आप को उस कांग्रेस में न केवल स्थापित किया है जिस कांग्रेस को मोदीकाल में मरा हुआ मान लिया गया था।
ऐसा कठिन परिश्रम से ही संभव है। भूपेश बघेल ने भाजपा के सामने कभी घुटने नहीं टेके और उसे उसकी ही भाषा में जवाब देते रहे हैं। यही वह कारण है जिसके चलते भाजपा और उसकी नीति निर्धारक संस्था आरएसएस सोच में पड़ गई है। यदि भूपेश बघेल को कांग्रेस अपना राष्ट्रीय अध्यक्ष चुन लेती है तो वह पिछड़ा वर्ग की बहुत बड़ी हिमायती कहलाएगी।
… क्योंकि भूपेश बघेल उस जाति-वर्ग (कुर्मी) से आते हैं जो कि छत्तीसगढ़ तो छोडि़ए पूरे भारत में बहुतायत है। देश के तकरीबन 17.24 करोड़ ग्रामीण परिवारों में से 44.4 प्रतिशत पिछड़ा वर्ग से आते हैं। पिछड़ा वर्ग के राष्ट्रीय आयोग के अनुसार 2006 में ओबीसी की पिछड़ी जातियों की संख्या 5013 मानी गई थी। देश की कुल आबादी की 6.9 फीसद संख्या उस पिछड़ा वर्ग से आती है जिसका प्रतिनिधित्व भूपेश बघेल करते हैं।
संघ और भाजपा की चिंता यह है कि यदि भूपेश बघेल राष्ट्रीय अध्यक्ष चुन लिए जाते हैं तो उसका परिवारवाद-वंशवाद जैसा नारा भोथरा हो जाएगा। साथ ही साथ वह पिछड़ा वर्ग की राजनीति में भी पिछड़ती नजर आएगी। चूंकि भूपेश बघेल ने अपनी छवि छत्तीसगढ़ में रामभक्त की बना ली है इसकारण वह कम से कम उन्हें तो धार्मिक मुद्दे पर यह कहते हुए घेर नहीं पाएगी कि कांग्रेस हिंदुओं से नफरत करती रही है।