रायपुर।
मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह उन राजनेताओं में शुमार किए जाते हैं जो हालात भांप कर निर्णय लेते हैं। देश भर में शराब बंदी के दौर के बीच सरकार द्वारा शराब बेचने का निर्णय जब भारी पडऩे लगा तो सीएम सिंह ने आखिर शराब बंदी का फैसला ले ही लिया।
सुप्रीम कोर्ट की गाईडलाईन और बिहार-गुजरात मॉडल के बाद देशभर में शराब बंदी को जोर है। छत्तीसगढ़ भी अब इस राह पर बढ़ रहा है। शराबबंदी की वकालत करने जब नीतीश कुमार रायपुर आये थे, तब ही लगने लगा था कि कुछ तो होने वाला है। जब रमन सिंह पटना गये, तो साफ हो गया कि रमन पर नीतीश का जादू चल गया है।
छत्तीसगढ़ में नई शराब नीति लागू हुए 12 दिन बीत चुके हैं। ठेकाप्रथा बंद कर सरकार खुद शराब बेचने लगी है। इस बीच लोकसुराज अभियान पर निकले मुख्यमंत्री खुद को आम लोगों से जोड़ते नजर आए, कभी मजदूर की रोटी खाई, तो कभी ईंट जोड़ते दिखे, एक बार तो प्रोटोकॉल तोड़कर एक महिला की ऑटो में ही जा बैठे।
दरअसल, शराब बिक्री के विरोध के चलते आम जनता में सरकार की साख तेजी से गिरी है। शराब के विरोध में सबसे आगे महिलाएं हैं, जो मजदूर वर्ग से आती हैं। क्योंकि शराबखोरी की वजह से ही उनके परिवार में अक्सर आफत आन पड़ती है। मुख्यमंत्री अब इन लोगों का दोबारा विश्वास जीतना चाहते हैं। वह लगभग हर जगह अवैध रूप से शराब बेचने वाले कोचियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने और उन्हें लटका देने की बाद कहते दिख रहे हैं।
वहीं रमन विरोधी कह रहे हैं कि नीतीश कुमार से मिलने के बाद उन्हें अक्ल आ गई है, तो कुछ का कहना है कि चरणबद्ध तरीके से शराबबंदी की बात करना उनकी चालाकी है, क्योंकि चुनाव के पहले सरकार के मार्फत जितना हो सके, राजस्व इक_ा करके चुनावी चंदे में इस्तेमाल किया जा सके। साथ ही चुनाव से ऐन वक्त पहले शराबबंदी लागू करके विपक्ष को परास्त करके सारा क्रेडिट लिया जा सके।
बहरहाल सूबे में यह चर्चा जोर पकड़ चुकी है कि जिस दिन सरकार ने नई आबकारी नीति लागू की। साल भर बाद उसी दिन पूर्ण शराबबंदी हो जायेगी। यानी एक अप्रैल 2018। इन चर्चाओं के बीच एक बात तो अब साफ हो गई है नीतीश और रमन का मेल कुछ बड़ा खेल तो कर गया है।