गुरू के समाधि स्थल से विहार पर निकल पडी़ हैं 69 वर्षीय आर्यिका गुरूमति माता
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अर्जुनी.
69 साल की उम्र में वह अपने गुरू के समाधि स्थल से विहार करते हुए 42 साल बाद सम्मेद शिखर तीर्थ पहुँचेंगी. यह वही तीर्थ है जहाँ वर्षों पहले अपने गुरू आचार्य श्री विद्यासागर जी महराज के साथ पहुँचीं थी. इस बार वह अपने गुरू के आशीर्वाद व 48 साध्वियों सँग तकरीबन 9 सौ किलोमीटर के लँबे सफर को नँगे पैर नापने निकलीं हैं.
दरअसल, डोंगरगढ़ के चंद्रगिरी तीर्थ को राज्य के पहले जैन तीर्थ का सम्मान प्राप्त है. हो भी क्यूं न क्यूंकि यहीं पर जैनियों के बडे़ सँत आचार्य श्री विद्यासागर जी ने समाधि ली थी.
यह बात है पिछले साल के फरवरी की. इस वर्ष फरवरी में ही आचार्यश्री का स्मरण करते हुए स्मारक का भूमिपूजन कार्यक्रम आयोजित हुआ. इसमें सौ से अधिक जैन साधु साध्वियाँ सहित केंद्रीय गृहमँत्री शामिल हुए थे.
इन्हीं में शामिल थीं आचार्यश्री की पहली शिष्या आर्यिका 105 गुरूमति माता. जिनका जन्म मध्यप्रदेश के सागर जिले में स्थित ग्राम बँडा में प्रभाचंद जैन के घर 30 जुलाई 1956 को हुआ था. तब इन्हें साँसारिक नाम सुमन मिला हुआ था.
इसके बाद यह जैन मुनियों के सँपर्क में आईं. इनके अँदर ऐसी जोत जगी कि इन्होंने साँसारिक मोह त्याग कर आत्म कल्याण की ओर अग्रसर हो गईं.
धन्यकुमार जैन इनके बारे में बताते हैं कि 18 साल की आयु में ब्रह्मचर्य व्रत अँगीकार किया था. इसी अवधि में उन्होंने जैनाचार्य विद्यासागर महाराज के साथ 1983 में सम्मेद शिखर तीर्थ की वँदना की थी.

धन्यकुमार के अनुसार आचार्यश्री ने इन्हें 2 अक्टूबर 1987 को आर्यिका दीक्षा दी थी. वह आचार्यश्री की पहली शिष्या है. आर्यिका गुरुमति माता करीब 42 सालों बाद 20 तीर्थकरों की मोक्ष भूमि जा रही हैं.
पावनममति माता ससँघ के साथ हो रहा विहार
79 वर्षीय आर्यिका गुरुमति माता, 64 वर्षीय दृढ़मति माता, पावनमति माता सहित 48 साध्वी वृंदों का दल जैनाचार्य विद्यासागर महाराज को विनयांजलि देने के बाद विहार पर निकल पडा़ है. 26 फरवरी को राज्य के पहले तीर्थ चंद्रगिरी से करीब 900 किमी की दूरी पर झारखंड में स्थित सम्मेद शिखर तीर्थ के लिए विहार किया जा रहा है.
साध्वी वृंद दुर्ग, रायपुर, जशपुर, अंबिकापुर होते हुए सम्मेद शिखर जी पहुंचेंगी. जीवन के 79 बसंत देख चुकी आर्यिका गुरुमति माता सहित अन्य साध्वियां आने वाले दिनों में झुलसा देने वाली गर्मी के बीच नंगे पैर लंबी दूरी तय कर 20 तीर्थकरों की मोक्ष भूमि तक का सफर नँगे पैरों से तय करेंगी.
धन्यकुमार बताते हैं कि जिस प्रकार मुस्लिम समुदाय के लिए मक्का मदीना और हिंदुओं के लिए चारधाम बेहद महत्वपूर्ण स्थान है, इसी प्रकार जैन अनुयायियों के लिए सम्मेद शिखर सबसे पावन तीर्थ है. कहा जाता है कि जो भी 27 किमी के क्षेत्रफल में फैले इस तीर्थ की तीन वंदना करता है, उसे नर्क गति प्राप्त नहीं होती है.