बिबडोद जहाँ विराजते हैं कर्ज देने वाले भगवान !
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रतलाम.
जिले में एक ऐसा गाँव है जहाँ कर्ज देने वाले हनुमानजी – शिवजी विराजते हैं. जी हाँ . . . यहाँ बात ग्राम बिबडोद की हो रही है जहाँ सँकटमोचक की एक ऐसी प्रतिमा है जिससे लिए गए कर्ज से उस कार्य में जरुर सफलता मिलती है जिसके लिए हाथ फैलाए गए थे.
बिबडोद, मध्य प्रदेश के रतलाम ज़िले का एक गाँव है. यह रतलाम पंचायत समिति के अंतर्गत आता है. बिबडोद ग्राम पंचायत के क्षेत्र में तीन गांव आते हैं.पँचायत मुख्यालय के अलावा भँवरगढी़ व सरवानाखुर्द इसमें शामिल हैं.
चार दशक से बाँटा जा रहा कर्ज . . .
गाँव में जो हनुमान शिव मँदिर है उसकी पूजा राकेश द्विवेदी 25 साल करते आ रहे हैं. पुजारी राकेश के पहले उनके पूर्वज पूजा करते थे.
पुजारी द्विवेदी बताते हैं कि करीब चार दशकों से मँदिर में कर्ज बाँटने की परंपरा चली आ रही है. आज जहाँ मँदिर है वहाँ पहले महज चबूतरा हुआ करता था.
पुजारी के बताए अनुसार मँदिर में प्रति वर्ष शिवरात्रि पर यज्ञ का आयोजन होते रहा है. इस आयोजन में प्रत्येक ग्रामवासी अपनी हैसियत के मुताबिक सहयोग करता है.
शिवरात्रि पर होने वाले धार्मिक कार्यक्रम में जितनी राशि लगती है उतनी लगा दी जाती है और शेष बची हुई राशि को कर्ज बाँटने के काम में लिया जाता है. ऐसा गाँववाले व पुजारी बताते हैं.
अब चबूतरे के स्थान पर भव्य मँदिर बन चुका है. गाँव में प्रत्येक माँगलिक कार्य के दौरान यहाँ विशेष पूजा अर्चना होती है. कोरोना जैसी महामारी के वक्त की गई पूजा से गाँव बहुत बडी़ मुसीबत से बच गया ऐसा ग्रामीणों का मानना है.
ग्रामीण बताते हैं कि उनका गाँव रतलाम से तकरीबन 6 किलोमीटर दूर है. इस गाँव की आबादी तकरीबन तीन हजार है. पूरा गाँव बीते 35-40 सालों से इसी मँदिर से कर्ज लेते रहा है.
मँदिर के बारे में बताते हैं कि जब वह नहीं बना था तब एक छोटा सा ओटला था. इसी ओटले पर भगवान हनुमान जी की प्रतिमा स्थापित थी. इसी प्रतिमा के आगे सभी नतमस्तक होते हैं.
ग्रामीणों के मुताबिक पूर्व में जब यज्ञ के बाद बची हुई राशि के उपयोग की बात उठी तब सलाह आई कि एक समिति बनाई जाए. समिति बनाई गई और उसकी सलाह पर बची हुई राशि को बतौर कर्ज जरूरतमँदों को बाँटा गया.
इस तरह कर्ज बाँटने की शुरुआत हुई. सालाना दो प्रतिशत ब्याज पर रकम ली जाने लगी, दी जाने लगी. गरीब को 15, मध्यमवर्गीय को दो और सक्षम को तीन हजार रूपए दिए जाते हैं.
ग्रामीणों का मानना है कि वो कोई भी काम या आयोजन भगवान हनुमान जी से कर्ज लेकर ही करते हैं. इसके पीछे ग्रामीणों की सोच है कि जिस काम के लिए कर्ज लिया है वो काम भगवान हनुमान जी की कृपा से सफल होता है.
बहरहाल, जो भी राशि दी जाती है बाकायदा उसको प्रॉमेसरी नोट पर लिखवाया जाता है. कर्जदार को साल भर में कर्ज चुकाना जरूरी नहीं है लेकिन उसका ब्याज साल भर में एक बार होली पर जमा कराया जाता है. गरीब के अलावा संपन्न लोग भी कर्ज लेते हैं.