जिले के बंद पड़े खदानों में केज कल्चर के माध्यम से मछली पालन का कार्य बन रहा लोकप्रिय एवं फायदेमंद

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राजनांदगांव। जिले के बंद पड़े खदानों में केज कल्चर के माध्यम से मछली पालन का कार्य नवाचार के तौर पर लोकप्रिय एवं फायदेमंद साबित हो रहा है। बंद खदानों का जलस्रोत आजीविका का आधार बना है और मछली पालन केज तकनीक के जरिये मत्स्य पालक स्वावलंबी बन रहे है। केज कल्चर से 150 लोगों को रोजगार मिला है, वही मत्स्य पालकों के लिए आर्थिक दृष्टि से लाभप्रद साबित हो रहा है। प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना के तहत मछली पालकों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना के तहत जिले में ग्राम जोरातराई में बंद पड़े खदानों में 9 करोड़ 72 लाख रूपए की लागत से 18 इकाई कुल 324 केज लगाए गए हैं। समूह की महिलाओं द्वारा यहां आधुनिक तकनीक केज कल्चर के माध्यम से जिले में किए जा रहे मत्स्य पालन से लगभग 150 लोगों को रोजगार उपलब्ध हो रहा है। केज कल्चर में तीव्र बढ़वार वाली मत्स्य जैसे की पंगेसियस, तिलापिया का पालन किया जा रहा है। प्रति केज हितग्राही को 2.5 टन से 3.0 टन मत्स्य उत्पादन प्राप्त होगा एवं लगभग 6 हजार रूपए से 8 हजार रूपए तक प्रति केज आमदनी प्राप्त हो रही है। प्रति केज इकाई लागत 3 लाख रूपए एवं 60 प्रतिशत अनुदान राशि 5 करोड़ 83 लाख 20 हजार रूपए प्रदान किया गया है। ग्राम मुढ़ीपार स्टेशन पारा निवासी श्रीमती पूर्णिमा साहू ने बताया कि प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना के तहत जय मां संतोष महिला स्वसहायता समूह मुढ़ीपार की महिलाओं को केज कल्चर के तहत मत्स्य पालन कार्य से जुड़ने से बहुत फायदा हो रहा है। इससे समूह की महिलाओं की आर्थिक स्थिति मजबूत हुई है। महिलाओं ने आजीविका मिलने पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी एवं मुख्यमंत्री विष्णु देव साय को धन्यवाद दिया।
उल्लेखनीय है कि जिले में मछली पालन को बढ़ावा देने के लिए केज कल्चर तकनीक का उपयोग कर मछली उत्पादन शुरू किया गया है। केज कल्चर को नेट पेन कल्चर भी कहा जाता है। इसके लिए जोरातराई खदान का चयन किया गया है। केज कल्चर मछली पालन की एक ऐसी तकनीक है, जिसमें जलाशय में एक निर्धारित स्थान पर फ्लोटिंग केज यूनिट बनाई जाती है। सभी यूनिट एक दूसरे से जुड़ी होती हैं। एक यूनिट में चार बाड़े होते हैं। एक बाड़ा 6 मीटर लंबा, 4 मीटर चौड़ा और 4 मीटर गहरा होता है। बाड़े के चारों ओर प्लास्टिक का मजबूत जाल होता है। इसे कछुए या अन्य जलीय जीव काट नहीं सकते। पानी में तैरते इसी जाल के बाड़े में मछली पालन किया जाता है। इन जालों में उंगली के आकार की मछलियों को पालन के लिए छोड़ दिया जाता है। मछलियों को रोजाना दाना डाला जाता है। ये मछलियां पांच माह में एक से सवा किलो की हो जाती हैं। मछली पालन की यह तकनीक जलाशय मत्स्य विकास योजना के तहत शुरू की जा रही है। खास बात यह है कि जलाशय के मूल उद्देश्य को प्रभावित किए बिना मत्स्य उत्पादकता को बढ़ाना है।
तालाब या झीलों की तुलना में केज में मछलियां तेजी से बढ़ती हैं। इसमें मछलियां स्वस्थ और सुरक्षित रहती हैं। मछलियों को खिलाना भी आसान है। मछलियों के बीमार होने की संभावना कम होती है, क्योंकि बाहरी मछलियों के संपर्क में नहीं आना होता। इसमें संक्रमण का खतरा भी नहीं रहता। मत्स्यपालक अपनी जरूरत और मांग के अनुसार केज से मछलियां निकाल सकते हैं। जरूरत नहीं होने पर मछलियों को केज में ही छोड़ा जा सकता है। इससे कोई नुकसान नहीं होता, बल्कि मछलियों को और बढ़ने का मौका मिलता है। केज तकनीक के जरिए मत्स्यपालक कम लागत और कम समय में अधिक मुनाफा कमाते हैं। साथ ही इससे मछली उत्पादन के मामले में जिला आत्मनिर्भर बन सकेगा। एक पिंजरे में 5 हजार तक केज साइज की मछलियां पाली जा रही हैं। इस तरह जोरातराई में बने 162 केज यूनिट में 8 लाख से अधिक मछलियां पाली जा रही है। जिले में पहली बार खदानों में केज कल्चर तकनीक से मछली उत्पादन शुरू किया गया है। इसके लिए जोरातराई के दो खदानों का चयन किया गया है। यह तकनीक समय और लागत के लिहाज से मछली पालकों के लिए फायदेमंद है। मछलीपालकों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए सरकार की प्रधानमंत्री मत्स्य सम्पदा योजना के तहत 486 लाख रूपए की लागत से 162 यूनिट केज लगाई है, जिसमें सरकार हितग्राहियों को 40 से 60 फीसदी अनुदान दे रही है। राज्य सरकार ने केज कल्चर के लिए स्थानीय बेरोजगार युवाओं एवं महिलाओं को रोजगार के साधन उपलब्ध कराने के दृष्टिकोण से विधिवत आवेदन मंगाए गए थे। छत्तीसगढ़ की एक एजेंसी ने केज कल्चर यूनिट स्थापित किया। यूनिट स्थापित करने के बाद मछली पालन कर रहे हैं। केज यूनिट स्थापित होने से लोगों को अब फ्रोजन मछली नहीं खानी पड़ेगी और ताजी मछलियां लोगों तक पहुंचेंगी।

(यह खबर टीम नेशन अलर्ट द्वारा संपादित नहीं की गई है. जैसी मिली वैसी प्रकाशित हुई है. अत: नेशन अलर्ट किसी भी तरह की गल्ती के लिए जिम्मेदार नहीं है.)