फिर दहाड़ रहे सिंह, सहमेंगे शेख

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जनचर्चा

सचिन तेंदुलकर . . . आधुनिक क्रिकेट के भगवान. इनके बारे में कहा जाता था कि जब जब इनके फार्म पर सवाल उठाए गए तब तब इन्होंने चुप्पी साधे रखी लेकिन इनके बल्ले ने जवाब दिया. मतलब खुद कुछ नहीं बोला लेकिन सबकुछ बोल भी दिया.

ऐसा ही कुछ आजकल छत्तीसगढ़ पुलिस में दिखाई दे रहा है. जनचर्चा बताती है कि बीते कुछ माह से आईपीएस जीपी सिंह सर्वाधिक चर्चा में रहे हैं.

होना भी चाहिए. जीपी को छत्तीसगढ़ का बेहद ईमानदार, कर्त्तव्यनिष्ठ व हिम्मत वाला अफसर माना जाता रहा है.

अब तो इन्हें जुमला नहीं बताया जा सकता है क्यूं कि कोर्ट की भी मुहर लग गई है. दरअसल, कोर्ट भावनाओं से या फिर षड्यंत्रों से नहीं चलता है.

वह तो उन सबूतों से चलता है जिनके आधार पर फैसला सुनाया जा सके. और सारे सबूत जीपी के पक्ष के रहे होंगे जिस आधार पर टीम से बाहर किए गए प्लेयर को फिर वापस लेना ही पडा़.

जनचर्चा के अनुसार जीपी को काँग्रेस सरकार का शुक्रगुजार होना चाहिए . . . आभार जताना चाहिए. वो इसलिए कि उसने उन्हें अपनी ईमानदारी, कर्त्तव्यनिष्ठता और हिम्मत दिखाने का अवसर प्रदान किया.

अब जबकि टीम में जीपी शामिल हो गए हैं तो कईयों में बेचैनी दिखाई पड़ने की भी खबर सुनाई पड़ रही है. इनमें सिपाही से लेकर आईपीएस शामिल बताए जाते हैं.

लेकिन जीपी का तौर तरीका सचिन जैसा ही नज़र आ रहा है. वह शाँत हैं. लगता है उन्होंने बातचीत एकदम सीमित और नियंत्रित कर रखी है.

वह फोन अथवा मोबाइल से भी दूरी बनाए हुए हैं. मतलब एक तरह से जीपी छत्तीसगढ़ में हैं कि नहीं यह भी पूछना पड़ रहा है.

यही अँदाजेबयाँ सचिन का हुआ करता था. सचिन का बल्ला बोला करता था. . . . तो क्या जीपी का काम बोलेगा ? यही सोच सोचकर शेख साहब अब सहमने लगे हैं.