नेशन अलर्ट
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रायपुर.
कभी सूबे में उन(स)की तूती बोला करती थी. वह सूबे के सरदार यानिकि मुख्यमंत्री का कभी गुरू भी कहला(ते)ता था लेकिन आज उ(न)स पर गिरफ्तारी की तलवार लटक रही है. प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने उसे उस गिरोह का सरगना माना है जिस गिरोह के इशारे पर शराब घोटाला किया गया. क्या वाकई विवेक ढाँड नामक रिटायर्ड आईएएस मुश्किल में हैं ? क्या वाकई उसे भी गिरफ्तार किया जा सकता है ?
जी हाँ, छत्तीसगढ़ के प्रशासनिक दायरे में यह सवाल बीते कई घँटों से तैर रहा है. ढाँड के कार्यकाल में काम कर चुके एक अन्य सेवानिवृत्त आईएएस अफसर इस पर आश्चर्य जताते हैं कि अब तक गिरफ्तार क्यूं नहीं किए गए ?
बहरहाल, ढाँड अपने जीवन के सँभवतः सबसे बुरे दौर से गुजर रहे हैं. वह मूलतः छत्तीसगढ़ के ही रहने वाले हैं.
जिस विज्ञान महाविद्यालय में उन्होंने अध्ययन किया है उस कालेज से कई महानुभव निकल चुके हैं. वरिष्ठ सँपादक सुनील कुमार कभी उनके कनिष्ठ रह चुके हैं.
विवेक ढाँड का घर परिवार साधन सँपन्न माना जाता रहा है. क्या भाजपा और क्या काँग्रेस . . . दोनों के ही शासनकाल में उनकी धमक रही थी.
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वह कभी मुख्यमंत्री सचिवालय के निकट रहे थे. इसके बाद उन्होंने मुख्य सचिव बनकर अपनी काबिलियत का लोहा मनवाया था.
भू सँपदा नियामक प्राधिकरण यानिकि रियल एस्टेट रेग्युलेटरी अथॉरिटी (रेरा) जब छत्तीसगढ़ में अवतरित हुआ/हुई तो चीफ सेक्रेटरी पद छोड़ने वाले विवेक ढाँड इस पर काबिज हो गए.
रेरा में ढाँड ने जमकर “उत्पाद” मचाया था. इस पर खबर फिर कभी ओर दी जाएगी लेकिन आज बात उस शराब घोटाले की जिसमें छत्तीसगढ़ के राजस्व के 2161 ( दो हजार एक सौ इकसठ ) करोड़ रूपए डूब गए.
चुप्पी छोडो़, कुछ तो बोलो . . .
अब बात विवेक ढाँड का नाम कैसे आया ? दरअसल, रिटायर्ड आईएएस अनिल टुटेजा और अरुणपति त्रिपाठी जैसे पुराने नौकरशाह इसी मामले को लेकर पहले से ही अँदर हैं.
सेंट्रल जेल में बँद टूटेजा और त्रिपाठी सहित इसी प्रकरण को लेकर कारोबारी अनवर ढेबर से ईडी ने व्यापक पूछताछ की थी. इसका लब्बोलुआब यह रहा कि एक सिंडिकेट का नाम उभर कर सामने आया.
ईडी के कान तब खडे़ हो गए जब इस सिंडिकेट के चीफ के रूप में उसे विवेक ढाँड का नाम सुनाई पडा़. सुनाई तो यह भी पड़ रहा है कि यह सिंडिकेट ढाँड के इशारे पर ही काम किया करता था.
प्रकरण में पूर्व आबकारी मँत्री कवासी लखमा गिरफ्त में ले लिए गए. ईडी ने कहा है कि उन्हें प्रतिमान दो करोड़ रूपए दिए जाते थे.
अब तक ईडी ने कुलजमा 36 माह का ही आँकलन किया है. इस हिसाब से अकेले कवासी लखमा को ही 72 करोड़ रूपए दिए गए.
जिस सिंडिकेट ने लखमा को 72 करोड़ रूपए दिए उसके सदस्यों व मुखिया ने कितने करोड़ रूपए कमाए होंगे यह अब तक उजागर नहीं हुआ है. हालाँकि ईडी ने कोर्ट में जो दस्तावेज प्रस्तुत किए हैं उनमें विवेक ढाँड का नाम प्रमुखता से शामिल किया गया है.
इधर, जो कभी राज्य का मुख्य सचिव रहा उस विवेक ढाँड ने अब फोन उठाना भी बँद कर दिया है. ढाँड साहब से “नेशन अलर्ट” ने दो मर्तबा सँपर्क करने का प्रयास किया था.
शुक्रवार को दिन के 14.03 बजे उनके मोबाइल पर घँटी दी गई थी लेकिन उन्होंने फोन नहीं उठाया. शनिवार शाम को एक बार फिर प्रयास किया गया.
शाम के 19.30 बजे ढाँड के मोबाइल पर सँपर्क करने की पुन: कोशिश की गई. इस बार भी उन्होंने फोन नहीं उठाया लेकिन एक सँदेश आया कि Sorry, I can’t talk right now. जब वह फोन उठायेंगे तब बात हो पाएगी लेकिन डर इस बात का है कि तब तक ईडी उन्हें न उठा ले.