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रायपुर.
पूर्व आबकारी मँत्री कवासी लखमा की गिरफ्तारी के बाद अब काँग्रेसी सरकार के समय के कुछेक मँत्रियों विधायकों की शह पर उनके गैरकानूनी कार्यों में सहयोग करने वाले शातिराना अँदाज में चुप्पी साध गए हैं. आगे यदि प्रवर्तन निदेशालय (ईडी), केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई), आयकर विभाग (आईटी) ने पूरी ईमानदारी से जमीन के सौदों की जाँच प्रारँभ की तो राज्य में भूचाल आ सकता है. सर्वाधिक प्रभावित राजनांदगाँव सँसदीय क्षेत्र होगा जहाँ सैकड़ों एकड़ जमीन में करोड़ों रूपए निवेश किए गए हैं.
दरअसल, आज नहीं तो कल यह तो होना ही था. काँग्रेस ने जो जीत 2018 के चुनाव में अर्जित की थी वह यदि छत्तीसगढ़ के इतिहास की सबसे बडी़ जीत थी तो 2023 में उसे जो हार मिली वह छत्तीसगढ़ में पहले कभी नहीं हुआ था. इसका प्रमुख कारण सरकार के अँदर और बाहर हुआ व्यापक भ्रष्टाचार था.
भ्रष्टाचार . . . शराब बेचने में, कोयला परिवहन में, युवाओं को नौकरी देने में, खनिज न्यास में, रेत के कारोबार में, शासकीय खरीदी बिक्री में, शासकीय ठेकों में, निर्माण में और न जाने कहाँ कहाँ !
और तो और कलेक्टर-एसपी की पोस्टिंग में भी भ्रष्ट तरीके अपनाए जाने की खबरें चाय ठेलों, पान ठेलों में सुनाई देती थी. यदि ऐसा सबकुछ नहीं भी था तो काँग्रेस का सुरक्षा तँत्र इतना कमजोर था कि तीर उसे भेद गया.
नांदगाँव क्यूं चर्चा में . . .
कवासी की गिरफ्तारी के पहले और बाद में राजनांदगाँव का नाम चर्चा में रहा है. इसका कारण लखमा परिवार की नांदगाँव के कुछेक लोगों से “घनिष्ठ मित्रता” बताई जाती है.
इतनी घनिष्ठ की हरीश लखमा आए दिन चोरी छिपे राजनांदगाँव आया करते थे ऐसा जगह जगह सुनाई देता है. मोबाइल नेटवर्क से इसकी पुष्टि की जा सकती है. होटल व्यवसायी, लखमा परिवार के बेहद नजदीकी रहे हैं.
यह गठजोड़ अवैध कमाई को नंबर एक पर करने में सक्रिय रहा है ऐसी सूचना केंद्रीय जाँच एजेंसियों के कानों तक पहुँची थी. हालाँकि अब तक नांदगाँव से जुडे़ तंत्र को एजेंसियों ने निशाने पर नहीं लिया है लेकिन क्या मालूम कल क्या हो ?
बहरहाल, कवासी की गिरफ्तारी का विरोध भी किया जा रहा है. बुधवार को बस्तर में ईडी का पुतला फूँका गया था तो गुरूवार को उस सुकमा के व्यवसायिक प्रतिष्ठान बँद रखे गए जहाँ के जिला पँचायत अध्यक्ष हरीश लखमा हैं.