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रायपुर/बिलासपुर.
जब समय अच्छा हो तो सब अच्छा होता है. इसका अहसास आईपीएस जीपी सिंह के प्रकरण को देखकर होता है. पिछले वर्ष जीपी सिंह के चेहरे पर मुस्कान देखी गई थी और इस साल उनकी पत्नी (श्रीमती मनप्रीत कौर) का चेहरा खिल उठा है. दरअसल, हाईकोर्ट बिलासपुर ने उनके चेहरे पर हँसी लौटाने वाला फैसला सुनाया है.
आईपीएस जीपी सिंह 1994 बैच के अधिकारी हैं. पूर्व में वह राज्य के एसीबी ईओडब्यू चीफ हुआ करते थे.
एसीबी ईओडब्यू चीफ होना ही उनके लिए परेशानी का कारण बना था. जीपी के स्थान पर जिन शेख आरिफ हुसैन नामक आईपीएस को ईओडब्यू चीफ बनाया गया उन्हीं के मार्गदर्शन में जीपी सिंह के यहाँ छापा पडा़ था.
प्रदेश में नागरिक आपूर्ति निगम (नान) के कथित घोटाले में तत्कालीन मुख्यमंत्री डा.रमन सिंह को फँसाने की साजिश थी. ऐसा वक्तव्य तब जीपी सिंह ने दिया था. यह सारा खेल काँग्रेसी सरकार के समय खेला गया था.
पहले जीपी सिंह ईओडब्यू से हटाए गए. उनके यहाँ छापा डाला गया. फिर उन्हें निलँबित किया गया. नोएडा से उन्हें गिरफ्तार किया गया.
इसके बाद गँभीर धाराओं में दर्ज प्रकरण का हवाला देते हुए उन्हें अनिवार्य रूप से सेवानिवृत्त किए जाने की राज्य सरकार ने केंद्र से अनुशंसा कर दी. केंद्र सरकार ने अनुशंसा मुताबिक जीपी को सेवानिवृत कर भी दिया.
इसके बाद जीपी की कानूनी लडा़ई का लँबा दौर चला. पहले वह कैट द्वारा बहाल किए गए. इसे कोर्ट में सरकारी चुनौती दी गई लेकिन वहाँ से भी उन्हीं की जीत हुई. हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक आईपीएस जीपी सिंह का प्रकरण गूँजा था.
इसके बाद आईपीएस जीपी सिंह ने अपने खिलाफ दर्ज मुकदमों को खारिज कराने कोर्ट से दरख़ास्त की थी. इस पर उनके पक्ष में फैसला आया.
मनप्रीत कौर को भी मिली राहत . . .
वह पिछले साल की बात थी. इस वर्ष उनकी पत्नी श्रीमती मनप्रीत कौर के चेहरे पर हाईकोर्ट के एक फैसले से मुस्कराहट देखी जा रही है. मतलब साल की शुरूआत अच्छी हुई है.
दरअसल, काँग्रेस सरकार में जीपी के खिलाफ दर्ज प्रकरण में उनके माता पिता सहित पत्नी, पारिवारिक मित्र को भी आरोपी बनाया गया था.
मुख्य न्यायाधीश जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस रविंद्र अग्रवाल की डबल बैंच ने मनप्रीत कौर द्वारा प्रस्तुत किए गए तर्क मान्य किए हैं. इसी आधार पर यह फैसला सुनाया गया है.
मनप्रीत कौर की शैक्षणिक योग्यता एमएससी लाइफ साइंस बताई जाती है. लाइफ साइंस में पीएचडी भी हैं. उनका पीसी कल्चर में स्पेशलाइजेशन है.
शादी से पहले और बाद में हुई आय का हिसाब किताब प्रस्तुत किया गया. एजुकेशनल कंसलटेंट और पर्सनैलिटी डेवलपमेंट की क्लासेस से हुई आय बताई गई.
वर्ष 2001 से 2021 तक आईपीएस की पदस्थापना जहाँ पर भी हुई वहाँ के महाविद्यालयों में अतिथि व्याख्याता के रूप में वह पदस्थ रहीं थीं. सलाहकार के रुप में भी उन्हें आय हुई थीं.
मनप्रीत ने कोर्ट को बताया कि उन्होंने नियमित तौर पर इनकम टैक्स एक्ट 1961 के तहत 2001 से अपनी इनकम टैक्स रिटर्न भरा है. उनकी 10 साल की आय को एसीबी ने गणना में ही नहीं लिया.
एंटी करप्शन ब्यूरो ने उन्हें इस संबंध में कोई समन भी नहीं भेजा था. और तो और उनका पक्ष भी लेने राज्य के एसीबी ईओडब्यू ने कभी कोई रूचि नहीं दिखाई थी.
बिना समन और बिना पक्ष जाने उन्हें आय से अधिक संपत्ति अर्जित करने के लिए दोषी मान लिया गया. पति आईपीएस जीपी सिंह को उकसाने के लिए एसीबी ने उन्हें आरोपी भी बना दिया.
याचिकाकर्ता मनप्रीत कौर के पति आईपीएस जीपी सिंह को भ्रष्टाचार के मामले में मुख्य आरोपी बनाया गया था. इसे अदालत ने ही रद्द कर दिया है. लिहाजा याचिकाकर्ता के खिलाफ मामला बने रहने का और ट्रायल चलाने का कोई औचित्य नहीं बनता.
तर्कों को सुनने के बाद चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस रविंद्र अग्रवाल की बेंच ने याचिकाकर्ता के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति के मामले में दर्ज एफआईआर को रद्द कर दिया है.