राजनांदगांव। पोट्ठ लईका पहल अंतर्गत जिला प्रशासन द्वारा कुपोषण की श्रेणी में आए बच्चों को सुपोषण की श्रेणी में लाने के लिए जनसहभागिता से बेहतरीन कार्य किया जा रहा है। सुशासन के दृष्टिगत जिला प्रशासन द्वारा किए जा रहे कार्यों में पोट्ठ लईका पहल का कारगर असर दिखाई दे रहा है। कलेक्टर संजय अग्रवाल के नेतृत्व एवं मार्गदर्शन में इस अभियान के लिए सभी ने टीम वर्क में कार्य किया, जिसके प्रभावी परिणाम दिखाई दे रहे हैं। पोट्ठ लईका पहल के क्रियान्वयन के लिए जिला पंचायत सीईओ सुश्री सुरूचि सिंह तथा महिला एवं बाल विकास विभाग की टीम, अन्य संबंधित विभाग द्वारा सामुदायिक सहभागिता से मिशन मोड में कार्य किया जा रहा है। कुपोषण की दर राजनांदगांव में 2024 में 11.94 प्रतिशत है। छत्तीसगढ़ में देखा गया है कि खाने के लिए भोजन की कमी नहीं है, लेकिन पोषण संबंधी परामर्श की आवश्यकता है। स्थूल और सूक्ष्म पोषक तत्वों के बारे में तथ्य, क्या खाना चाहिए और बच्चे को किस समय खिलाना चाहिए के संबंध में अभिभावकों को जानकारी होना चाहिए। परामर्श की कमी के कारण कई अभिभावक अपने बच्चों को पर्याप्त संतुलित आहार नहीं दे पाते, जिसके कारण बच्चे कुपोषित हो जाते हैं। इस समस्या को हल करने के लिए जिला प्रशासन ने यूनिसेफ और एबीस पहल के साथ साझेदारी में पोट्ठ लईका पहल की शुरूआत की गई। यूनिसेफ छत्तीसगढ़ पोट्ठ लईका पहल कार्यक्रम का तकनीकी और प्रशिक्षण भागीदार रहा है।
पोट्इ लईका पहल अंतर्गत सबसे पहले सर्वाधिक कुपोषित 241 आंगनबाड़ी केन्द्रों का चयन किया गया। जिनमें 323 एसएएम (गंभीर तीव्र कुपोषित), 1080 एमएएम (मध्यम तीव्र कुपोषण), 284 गंभीर रूप से कम वजन वाले बच्चे और 1726 मध्यम कम वजन वाले बच्चों को लक्षित किया गया। पोट्ठ लईका पहल अंतर्गत स्वास्थ्य, महिला एवं बाल विकास तथा राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के अधिकारियों को यूनिसेफ द्वारा पोषण संबंधी परामर्श के संबंध में गहन प्रशिक्षण दिया गया। इस प्रशिक्षण के बाद उन्होंने अपने क्षेत्र में पोषण परामर्श देना शुरू किया। इस कार्यक्रम अंतर्गत लक्षित आंगनबाड़ी केंद्रों में हर शुक्रवार को पालक चौपाल का आयोजन किया जाता है। इस चौपाल में लक्षित बच्चों के माता-पिता, सरपंच, सचिव, नवविवाहित महिलाएं, गर्भवती महिलाएं, स्वसहायता समूह से जुड़ी हुई महिलाएं एवं अन्य ग्रामवासी शामिल होते हैं। पालक चौपाल में सारे समुदाय को सुपोषण के मुद्दे से जोड़ते हुए उनको पोषण परामर्श दिया जाता है और कुपोषित बच्चों के वजन को हर सप्ताह निगरानी की जाती है। प्रत्येक माह कलेक्टर संजय अग्रवाल द्वारा इस अभियान की प्रगति की समीक्षा की जा रही है। बैठक में आंगनबाड़ीवार समीक्षा की जाती है तथा पर्यवेक्षकों को प्रेरित किया जाता है।
कार्यक्रम अधिकारी महिला एवं बाल विकास श्रीमती गुरप्रीत कौर ने बताया कि आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं, पर्यवेक्षकों, सीडीपीओ, स्वास्थ्य विभाग और एसएचजी महिलाओं के अथक प्रयासों के कारण अभियान के कार्यान्वयन के पहले पांच महीनों में 3413 में से 1943 बच्चों को कुपोषण से बाहर आ गए हैं। जिनमें 243 एसएएम (गंभीर तीव्र कुपोषित), 794 एमएएम (मध्यम तीव्र कुपोषण), 124 गंभीर रूप से कम वजन वाले बच्चे और 762 मध्यम कम वजन वाले बच्चे शामिल है, जिन्हें पोषण परामर्श और निगरानी के माध्यम से कुपोषण से बाहर लाया गया है। यह एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है, क्योंकि यह केवल परामर्श और निगरानी के माध्यम से किया गया था। यह कार्यक्रम तब तक चलता रहेगा जब तक शत-प्रतिशत लक्षित बच्चों को कुपोषण से बाहर नहीं निकाल लिया जाता। भविष्य में इस कार्यक्रम को पूरे जिले में लागू करने की योजना है और इसे पूरे राज्य में भी लागू करने का सुझाव दिया गया है। अब अक्टूबर 2024 से राजनांदगांव और डोंगरगांव विकासखंड के सभी एसएएम बच्चों को ऑगमेंटेड टेक होम राशन (टीएचआर) प्रदान करके एबिस समूह भी इस कार्यक्रम में शामिल हो गया है। यह मददगार रहा है और एटीएचआर के प्रभाव के नतीजे भी प्राप्त होंगे।
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