विसर्जन झाँकी : अद्भुत, अविश्‍वसनीय, अकल्‍पनीय

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कैसे लौट आया सँस्कारधानी का गौरव ?

नेशन अलर्ट/9770656789

मृत्युंजय

टीवी के किसी चैनल पर अद्भुत, अविश्‍वसनीय, अकल्‍पनीय शीर्षक से एक कार्यक्रम आता है. हालाँकि टीवी देखने का कोई शौक नहीं है लेकिन अपनी खबर के लिए शीर्षक तय करते समय यह अचानक ही मुझे याद आया.

. . . और इससे बढिया शीर्षक कम से कम मेरी नज़र में हो ही नहीं सकता था. वर्षों के बाद सँस्कारधानी अपने पूरे रँग में नज़र आई.

सालों बीत गए थे. हर साल गणेश पर्व आता और आती थी कई तरह की परेशानियां. चूँकि नांदगाँव में आज भी कस्बाई मानसिकता का बोलबाला है इस कारण यहाँ के पुराने और नए लोग शाँति के साथ जीना पसँद करते हैं.

पटरी के इस और उस पार के लोगों में इक तरह की बेफ़िक्री
दिखाई देती है. वही बेफ़िक्री का भाव गणेश पर्व के समय बीते कुछ वर्षों से गायब हो जा रहा था.

होता भी क्यूं नहीं. . . क्यूं कि यह पर्व नांदगाँव को अशाँत कर देता था. एक तरफ बडे़ बडे़ डीजेवालों का शोर और दूसरी तरफ तरह तरह के नशे में डूबा आजकल का बेरोजगार युवा वर्ग.

गणेश पर्व को इन्हीं नशेडियों ने निपटने और निपटाने का अघोषित माध्यम बना लिया था. सालभर के झगड़ों का फैसला इन्हीं दिनों में करने और कराने के लिए नशे में डूबा युवा वर्ग उधेड़ -बुन में लगा रहता था.

परेशान होती थी जनता. . . परेशान होते थे निर्दोष माँ बाप. . . परेशान होता था प्रशासन व पुलिस. पर्व में गणेश जी आते जरूर थे लेकिन जाते जाते कईयों को बहुत सा दुख दे जाते थे.

. . . लेकिन इस बार ऐसा कुछ नहीं हुआ. शाँति और भाईचारे के माहौल में पूरे नांदगाँववासियों ने एक तरह से अपने सँस्कारवान शहर में विघ्नहर्ता की अगवानी की . . . उन्हें विदा किया.

पूरा पर्व जिस उत्साह, उमँग और आतुरता के साथ मनाया गया वह नांदगाँव के पुराने दिनों को लौटा गया. वो पुराने दिन जब पूरे भक्तिपूर्ण माहौल में गणेश पर्व मनाया जाता था. कुछ ऐसा ही नजा़रा इस बार दिखाई दिया.

हालाँकि पर्व के अँतिम के दो चार दिन कुछेक व्यवसायियों और इतनी ही समितियों के तथाकथित ठेकेदारों के सुर तनाव पैदा करते हुए नज़र आ रहे थे. लेकिन तनाव नहीं होना था तो नहीं ही हुआ.

ऐसे तनावग्रस्त लोगों के लाख उचकने और उचकाने के बावजूद यहाँ का जिम्मेदार प्रशासन टस से मस नहीं हुआ. उसने माननीय उच्चतम और उच्च न्यायालय द्वारा जारी की गई गाइड लाइन का सँभवत: पूरी तरह से पालन करने की अपनी ओर से ईमानदारी कोशिश की.

इस कोशिश का नतीजा भी अच्छा ही आया. बिना किसी बडे़ विवाद और चाकूछूरी चले बिना गणेश जी को सँस्कारधानी से विदाई दी गई.

शाँति के साथ मँगलवार और बुधवार की मध्य रात्रि को गणेश जी को विदा करने तकरीबन आधा शहर अपने अपने घरों से निकल कर सड़कों पर शीश नवाए दिखाई दिया. क्या शहरवासी और क्या ग्रामीणजन . . . दोनों ने ही सुरक्षित माहौल में झाँकी का आनंद लिया.

पूरा गणेशोत्सव उमँग और उत्साह के साथ सँस्कारधानी ने इस बार जी लिया. बिना किसी खून खराबे के सँस्कारधानी में वर्षों बाद गणेश पर्व यदि सँपन्न हुआ है तो उसके लिए समितियों, नागरिकों के साथ साथ प्रशासन की भी पीठ थपथपाई जानी चाहिए.

यहाँ के कलेक्टर और पुलिस अधीक्षक के साथ साथ दोनों की ही टीम के बाकी सदस्यों को भी बधाई देनी चाहिए. बधाई इसलिए कि उन सभी के प्रयासों से सँस्कारधानी का वह गौरव लौट आया जो बीते वर्षों में कहीं किसी भारतमाता चौक पर हो रहे विवाद और गाली गलौच के बीच हमसे बिछड़ गया था.

नांदगाँव के प्रसिद्ध कवि और समालोचक माने जाने वाले जितेंद्र मिश्रा पूरी व्यवस्था को काबिले गौर बताते हैं. मिश्राजी कहते हैं नांदगाँव की पब्लिक और प्रशासन ने झाँकी के पुराने दिन लौटाने में कोई कोर कसर नहीं छोडी़ है.

आने वाले वर्षों में भी इसी तरह की झाँकी निकलती रहे इन्हीं मँगल कामनाओं के साथ कि :

. . . अगले बरस तू जल्दी आ !!!

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