श्री जयाचार्य का 144 वाँ निर्वाण दिवस मनाया गया

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रायपुर.

“मासखमण तपस्या” का अभिनंदन समारोह शुक्रवार को श्रीलाल गंगा पटवा भवन टैगोर नगर में आयोजित किया गया. किसी ने छह तो किसी ने 58 दिनों का उपवास किया था जिनका उल्लेख करते हुए प्रेरणा लेने मुनिश्री ने कहा.

जैन तेरापंथ समाज में मुनिश्री की विशेष प्रेरणा से प्रथम बार पांच मासखमण तपस्या अर्थात एक माह तक किसी भी प्रकार के अन्न का त्याग रूपी तपस्या सुखसाता पूर्वक परिसंपन्न हुई.

मुनिश्री सुधाकर ने कहा कि तप तपाता है और जीवन को कुंदन बनाता है. मुनिश्री तेरापंथ धर्म संघ के आचार्य श्रीजयाचार्य के 144 वें निर्वाण दिवस अवसर पर बोल रहे थे.

मुनिश्री सुधाकर ने कहा कि धरती पर महापुरुषों का अवतरण कभी कभी होता है.ऐसी ही विशेष प्रतिभा के धनी थे आचार्य जयाचार्य.

उन्होंने कहा कि संभवतः साधना के बल पर उन्हें देवीय शक्ति प्राप्त थी जिसका चमत्कार यदा-कदा देखने को मिलता है. उनका तेरापंथ धर्म संघ पर विशेष उपकार है.

मुनिश्री ने कहा कि वह पुरुष नहीं महापुरुष थे. मानव नहीं महामानव थे अर्थात देव तुल्य थे क्योंकि कि जिनका दर्शन करने तत्कालीन जयपुर नरेश वेश बदल कर अर्धरात्रि में आते थे.

मुनिश्री ने उनके सम्मुख अपनी 36 की तपस्या का प्रत्याखान लेकर उपस्थित तपस्वी कमल ललवानी की तपस्या की अनुमोदना करते हुए खूब प्रशंसा की.कार्यक्रम में उपस्थित श्रावक – श्राविकाओं को प्रेरणा लेने का आह्वान किया.

मुनिश्री नरेश कुमार ने सुमधुर गीतिका का किया संगान
तेरापंथ धर्म संघ की सभी संघीय संस्थाओं के साथ उपस्थित परिजनों ने भी तपस्वी के तप की अनुमोदना की.

कार्यक्रम का संचालन मनीष नाहर ने किया. तपस्या के तपस्वी ममता चोपड़ा-58, मुक्ता छाजेड़-6, माणक चोपड़ा व निर्मला भंडारी अपने सिध्दी तप के प्रत्याखान के साथ उपस्थित रहे.

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